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________________ अमितगतिविरचिता वरं मता तवाध्यक्ष प्रविश्य ज्वलने विभो। न परोक्षे तव क्षिप्रं मारिता विरहारिणा ॥६६ एकाकिनी स्थितामत्र मां निशुम्भति' मन्मथः। कुरङ्गीमिव पञ्चास्यः" कानने शरणोज्झिताम् ॥६७ यदि गच्छसि गच्छ त्वं पन्थानः सन्तु ते शिवाः'। ममापि जीवितव्यस्य गच्छतो यममन्दिरम् ॥६८ ग्रामकूटस्ततो ऽवादोन्मैवं वादीम॑गेक्षणे । स्थिरीभूय गृहे तिष्ठ मा कार्बर्गमने मनः ॥६९ परस्त्रीलोलुपो राजा त्वां गल्लातीक्षितां यतः। स्थापयित्वा ततः कान्ते त्वां गच्छामि निकेतने ॥७० स्वादशी विभ्रमाधारां दृष्टवा गृह्णाति पार्थिवः । अनन्यसदृशाकारं स्त्रीरत्नं को विमुञ्चति ॥७१ संबोध्येति प्रियां मुक्त्वा स्कन्धावारमसौ गतः। ग्रामकूटपतिर्गेहं समर्म्य धनपूरितम् ॥७२ ६६) १. समीपम् । २. वरं न । ३. देशान्तरं गते । ६७) १. पीडयति । २. सिंहः । ६८) १. कल्याणकारिणः । हे स्वामिन् ! तुम्हारे देखते हुए अग्निमें प्रविष्ट होकर मर जाना अच्छा है, किन्तु तुम्हारे बिना वियोगरूप शत्रुके द्वारा शीघ्र मारा जाना अच्छा नहीं है ॥६६॥ ___यहाँ अकेले रहनेपर मुझे कामदेव इस तरहसे मार डालेगा जिस प्रकार कि जंगलमें रक्षकसे रहित हिरणीको सिंह मार डालता है ॥६॥ फिर भी यदि तुम | मझे अकेली छोडकर जाते हो तो जाओ, तुम्हारा मार्ग कल्याणकारक हो। इधर यमराजके घरको जानेवाले मेरे जीवनका भी मार्ग कल्याणकारक होतुम्हारे बिना मेरी मृत्यु निश्चित है॥६८॥ कुरंगीके इन वचनोंको सुनकर वह बहुधान्यक बोला कि हे मृग जैसे नेत्रोंवाली ! तू इस प्रकार मत बोल, तू स्थिर होकर घरपर रह और मेरे साथ जानेकी इच्छा न कर ॥६९।। कारण यह है कि राजा परस्त्रीका लोलुपी है, वह तुझे देखकर ग्रहण कर लेगा। इसीलिए मैं तुझे घरपर रखकर जाता हूँ॥७॥ राजा तुम जैसी विलासयुक्त स्त्रीको देखकर ग्रहण कर लेता है। ठीक है-अनुपम आकृतिको धारण करनेवाली स्त्रीरूप रत्नको भला कौन छोड़ता है ? कोई नहीं छोड़ता ॥७१।। इस प्रकार वह ग्रामकूट अपनी प्रिया (कुरंगी) को समझाकर और वहींपर छोड़कर धनसे परिपूर्ण घरको उसे समर्पित करते हुए कटकको चला गया ॥७२।। ६६) अमृतं, क इ तवाध्यक्षे । ६८) अ सन्ति....जीवितस्यास्य....गच्छता। ७१) अ विमुञ्चते; इहि for वि। ७२) इ प्रियामुक्त्वा ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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