________________
धर्मपरीक्षा-४ मा ज्ञासीरविचाराणां दोषमेषु विचारिषु । पशूनां जायते धर्मो मानुषेषु न सर्वथा ॥३५ आभीरसदृशानस्मान्मा बुधो मुग्धचेतसः । वायसैः सदृशाः सन्ति न हंसा हि कदाचन ॥३६ अत्रे न्यायपटीयांसो युक्तायुक्तविचारिणः। सर्वे ऽपि ब्राह्मणा भद्र मा शङ्किष्ठा वदेप्सितम् ॥३७ यद्युक्त्या घटते वाक्यं साधुभिर्यच्च बुध्यते । तद् ब्रूहि भद्र निःशङ्को ग्रहीष्यामो विचारतः॥३८ इति विप्रवचः श्रुत्वा मनोवेगो ऽलपेद्वचः। जिनेशचरणाम्भोजचञ्चरोकः कलस्वनः ॥३९ रक्तो द्विष्टो मनोमूढो व्युद्ग्राही पित्तदूषितः। चतःक्षीरो ऽगुरुज्ञेयाश्चन्दनो बालिशो दश ॥४०
amanawar
३५) १. क विचाररहितः धर्मः । ३६) १. मूढ । २. क काकपक्षिभिः । ३७) १. क सभायां । २. क न्यायप्रवीणाः । ३. क मनोभिलषितम् । ३९) १. क अवादीत् । २. सुस्वरः । ४०) १. इति दश मूढा ज्ञेयाः ।
तुमने जो दोष आभीर देशके अविचारी जनोंमें देखा है उसे इन विचारशील विद्वानोंमें मत समझो। कारण यह कि पशुओंका धर्म मनुष्योंमें बिलकुल नहीं पाया जाता है ॥३५।।
तुम हम लोगोंको आभीर देशवासियोंके अविचारक मत समझो, क्योंकि, कौवोंके समान कभी हंस नहीं हुआ करते हैं ॥३६॥
हे भद्र ! यहाँ पर सब ही ब्राह्मण नीतिमें अतिशय चतुर और योग्य-अयोग्यका विचार करनेवाले हैं। इसलिए तुम किसी प्रकारकी शंका न करके अपनी अभीष्ट बातको कहो ॥३७||
हे भद्र ! जो वचन युक्तिसे संगत है तथा जिसे साधुजन योग्य मानते हैं उसे तुम निःशंक होकर बोलो। हम लोग उसे विचारपूर्वक ग्रहण करेंगे ॥३८॥ .
इस प्रकार उस ब्राह्मणके द्वारा कहे गये वचनको सुनकर जिनेन्द्र भगवान्के चरणरूप कमलोंका भ्रमर (जिनेन्द्रभक्त) वह मनोवेग मधुर वाणीसे इस प्रकार बोला ॥३९।। . रक्त, द्विष्ट, मनोमूढ, व्युद्ग्राही, पित्तदूषित, चूत, क्षीर, अगुरु, चन्दन और बालिश ये दस मूर्ख जानने चाहिए ॥४०॥ ३५) इ मानवेषु । ३६) अ ब बुद्धा, क बुधा । ३७) इ शकिष्ट । ३८) अ यद्युक्त्वा । ४०) अ क ड दुष्टो, ब द्दिष्टो; क ड मतो मूढो, ड क्षीरागुरः ज्ञेयाश्चंदना; क ड इ बालिशा।