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________________ .६० अमितगतिविरचिता पुंसा सत्यमपि प्रोक्तं प्रपद्यन्ते न बालिशाः । यतस्ततो न वक्तव्यं तन्मध्ये? हितमिच्छता ॥३० अनुभूतं श्रुतं दृष्टं प्रसिद्धं च प्रपद्यते । अपरं न यतो लोको न वाच्यं पटुना ततः ॥३१ ममापि निर्विचाराणां मध्ये ऽत्र वदतो यतः । ईदृशो जायते दोषो न वदामि ततः स्फुटम् ॥३२ विचारयति यः कश्चित् पूर्वापरविचारकः । उच्यते' पुरतस्तस्य न परस्य पटीयसा ॥३३ इत्युक्त्वावसिते' खेटे जगाद द्विजपुंगवः । मैवं साधो गदीर्नास्ति कश्चिदत्राविवेचकः ॥ ३४ ३०) १. मन्यन्ते । २. अज्ञानिमध्ये | ३२) १. वचनस्य मम मनोवेगस्य । ३३) १. विभाषितम् । २. न कथ्यते । ३. अविचारकस्य । ३४) १. स्थितवति, मौने कृते सति ; क उक्त्वा स्थिते सति । २. क सभायाम् । पुरुष यदि सत्य बात भी कहता है तो भी मूर्खजन उसे नहीं मानते हैं । इसलिए विचारशील मनुष्यको अपने हितकी इच्छासे मूर्खोके मध्य में सत्य बात भी नहीं कहना चाहिए ||३०|| • लोकमें जो बात अनुभवमें आ चुकी है, सुनी गयी है, देखी गयी है या प्रसिद्ध हो चुकी है उसीको मनुष्य स्वीकार करता है; इसके विपरीत वह अननुभूत, अश्रुत, अदृष्ट या अप्रसिद्ध बातको स्वीकार नहीं करता है । इसीलिए चतुर पुरुषको ऐसी ( अननुभूत आदि ) बात नहीं कहना चाहिए ||३१|| यहाँ विचारहीन मनुष्योंके बीच में बोलते हुए चूँकि मेरे सामने भी वही दोष उत्पन्न हो सकता है, इसीलिए मैं यहाँ स्पष्ट बात नहीं कहना चाहता हूँ ||३२|| पूर्वापरका विचार करनेवाला जो कोई मनुष्य दूसरेके कहे हुए वचनपर विचार करता है उसके आगे ही चतुर पुरुष बोलता है, अन्य ( अविचारक) के आगे वह नहीं बोलता ॥ ३३॥ इस प्रकार कहकर मनोवेगके चुप हो जानेपर ब्राह्मणों में प्रमुख वह विद्वान् बोला कि हे सज्जन ! ऐसा मत कहो, क्योंकि इस देशमें अविवेकी कोई नहीं है- - सब ही विचारक ॥३४॥ ३१) अ च for न; अ क लोके । ३४) अ ऽगदीन्नास्ति देशे ऽत्राप्यविवेचकः; इदत्ताविचारकः ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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