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धर्मपरीक्षा- ३
नाजन्ममृत्युपर्यन्तो वियोगो विद्यते ययोः । देहात्मनोरिवक्वापि तयोः संगतमुत्तमम् ॥११
कोदृशी संगतिर्दर्शे' सूर्याचन्द्रमसोरिव । एकदा मिलतोर्मासे सप्रतापाप्रतापयोः ॥१२ तत्कर्तव्यं बुधैमित्रं कलत्रं च मनोरमम् । यज्जातु न पराधीनं चित्रस्थमिव जायते ॥१३ शंसनीया तयोमैत्री शश्वदव्यभिचारिणोः । वियोगो न ययोरस्ति दिवसादित्ययोरिव ॥१४ यः क्षीणे क्षीयते साधौ वर्धते वर्धिते सति । तेनामा इलाध्यते सख्यं चन्द्रस्येव पयोधिना ॥१५
ततो ऽवोचन्मनोवेगो मा कोपीस्त्वं महामते । भ्रान्तो ऽहं मानुषे क्षेत्रे वन्दमानो जिनाकृतीः ॥१६
११) १. मित्रत्वम् ।
१२) १. अमावास्यायाम् ।
१४) १. अवञ्चकयोः ।
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शरीर और आत्माके समान जिन दोनोंका जन्मसे लेकर मरणपर्यन्त कहीं पर भी वियोग नहीं होता है उनका संयोग ( मित्रता ) ही वास्तवमें उत्तम है ॥ ११ ॥
जो तेजस्वी सूर्य और निस्तेज चन्द्रमा दोनों महीने में केवल एक बार अमावस्या के दिन परस्पर मिला करते हैं उनके समान भिन्न स्वभाववाले होकर महीने में एक-आध बार परस्पर मिलनेवाले दो प्राणियोंके बीचमें भला मित्रता किस प्रकार हो सकती है ? नहीं हो सकती है ॥१२॥
बुद्धिमान मनुष्यों को ऐसे मनोरम ( मनको मुदित करनेवाले) प्राणीको मित्र और स्त्री बनाना चाहिए जो कि चित्रमें स्थितके समान कभी भी दूसरोंके अधीन नहीं हो सकता हो || १३|| निरन्तर एक दूसरे के बिना न रहनेवाले दिन और सूर्यके समान जिन दो प्राणियों में कभी वियोगकी सम्भावना नहीं है उनकी मित्रता प्रशंसनीय है ॥ १४॥
जो साधु ( सज्जन ) के क्षीण ( कृश ) होनेपर स्वयं क्षीण होता है तथा उसके वृद्धिंगत होनेपर वृद्धिको प्राप्त होता है उसके साथ की गयी मित्रता प्रशंसा योग्य है । जैसे— समुद्र के साथ चन्द्रकी मित्रता । कारण कि कृष्ण पक्षमें चन्द्रके क्षीण होनेपर वह समुद्र भी स्वयं क्षीण होता है तथा उसके शुक्ल पक्षमें वृद्धिंगत होनेपर वह भी वृद्धिको प्राप्त होता है ||१५||
पवनवेग इस उलाहनेको सुनकर मनोवेग बोला कि हे अतिशय बुद्धिमान् मित्र ! १२) क इ सूर्यचन्द्र ; क सत्प्रतापां । १४ ) इ वियोगे न । १५ ) इ यत्क्षीणे; अ इ साधो; ब इ तन्नाम; इश्लाघते सत्यं । १६) अ ब मानुषक्षेत्रे ।
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