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________________ धर्मपरीक्षा-२ धामिकाः कान्तयाश्लिष्टाः शेरते मणिमन्दिरे । पापिनो रक्षणं तेषां कुर्वते शस्त्रपाणयः ।।३५ भुञ्जते मिष्टमाहारं सौवर्णामत्रसंस्थितम् । धार्मिकाः पापिनस्तेषामुच्छिष्टं मण्डला इव ॥३६ धार्मिका वसते वस्त्रं महाघ' कोमलं धनम् । लभन्ते न शतच्छिद्रं कौपीनमपि पापिनः ॥३७ गीयन्ते पुण्यतो धन्या लोकविख्यातकीर्तयः। गायन्ति पुरतस्तेषां पापतश्चित्रचाटवः ॥३८ चक्रिणस्तीर्थकर्तारः केशवाः प्रतिकेशवाः। सर्वे धर्मेण जायन्ते कीर्तिव्याप्तजगत्त्रयाः॥३९ वामनाः पामनाः' खजा रोमशाः किराः शठाः । जायन्ते पापतो नीचाः सर्वलोकविनिन्दिताः॥४० ३६) १. भाजनम् । ३७) १. अमूल्यम्; प्रमोल्यकम् । ४०) १. कण्डूसंयुक्ताः । पुण्यशाली मनुष्य स्त्रीके द्वारा आलिंगित होकर मणिमय भवनके भीतर सोते हैं और पापके प्रभावसे दूसरे मनुष्य हाथमें शस्त्रको ग्रहण करके उक्त पुण्यशाली पुरुष-स्त्रियोंकी रक्षा किया करते हैं ॥३५॥ पुण्यपुरुष सुवर्णमय पात्रमें स्थित मधुर आहारको ग्रहण किया करते हैं और पापी जन कुत्तोंके समान उनकी जूठनको खाया करते हैं ॥३६॥ धर्मात्मा जन प्रशस्त, बहुमूल्य, कोमल और सघन वस्त्रको प्राप्त करते हैं, परन्तु पापी जन सौ छेदोंवाली लँगोटीको भी नहीं प्राप्त कर पाते हैं ॥३७॥ पुण्यके उदयसे जिनकी कीर्ति लोकमें फैली हुई है ऐसे प्रशंसनीय पुरुषोंका यशोगान किया जाता है और पापके उदयसे इनकी अनेक प्रकारसे खुशामद करनेवाले दूसरे जन उनके आगे उन्हींकी कीर्तिको गाया करते हैं ॥३८॥ तीनों लोकोंको अपनी कीर्तिसे व्याप्त करनेवाले चक्रवर्ती, तीर्थंकर, नारायण और प्रतिनारायण ये सब धर्मके प्रभावसे ही उत्पन्न होते हैं ॥३९॥ इसके विपरीत सब लोगोंके द्वारा अतिशय निन्दित बौने, खुजलीयुक्त शरीरवाले, कुबड़े, अधिक रोमोंवाले, दास, मर्ख और नीच जन पापके उदयसे उत्पन्न हुआ करते हैं॥४०॥ ३५) अ पापतो; अ ब कुर्वते । ३६) ब मृष्टमाहारं; इ सौवर्णपात्रसं ब क ड इ "मुत्सृष्टं । ३७) अ धार्मिका वसनं शस्तं, क इ वासते । ३८) क गायन्ते पुरत ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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