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________________ अमितगतिविरचिता मिथ्यात्वमुत्सार्य' कथं मयायं नियोजनीयो जिननाथधर्मे । मनोजवो नो लभते स्म निद्रां विचिन्तयन्नेवमनिशं सः॥५३ जिनेन्द्रचन्द्रायतनानि लोके स वन्दमानो भ्रमति स्म नित्यम् । न धर्मकार्ये रचयन्ति सन्तः कदाचनालस्यमनर्थमूलम् ॥५४ निवर्तमानस्य' कदाचनास्य प्रवन्ध सर्वा जिनपुङ्गवार्चाः । श्रीकृत्रिमाकृत्रिमभेदभिन्ना विमानमार्गे स्खलितं विमानम् ॥५५ कि वैरिणा मे स्खलितं विमानं महद्धिभाजाथ तपस्विनेदम् । दध्याविति व्याकुलचित्तवृत्तिविनिश्चलं वीक्ष्य विमानमेषः ॥५६ विबोधुकामः' प्रतिबन्धहेतुं विलोकमानो वसुधामधस्तात् । पुराकरग्रामवनादिरम्यं स मालवाख्यं विषयं ददर्श ॥५७ ५३) १. क त्यक्ता । २. क मनोवेगेन स्थापनीयः । ३. क पवनवेगः । ४. क मनोवेगः। ५४) १. क चैत्यालय । २. कथंभूतम् आलस्यम् । कथा५५) १. व्याघुट्यमानस्य । २. क आकाशमार्गे । ३. क स्तम्भितं । ५६) १. क चिन्तयति स्म। ५७) १. वाञ्छा; क ज्ञातुमिच्छुः । २. क विमानस्तम्भनकारणम् । उस मनोवेगको दिन-रात यही चिन्ता रहती थी कि मैं पवनवेगके मिथ्यात्वको हटाकर किस प्रकारसे उसे जैनधर्म में नियुक्त करूँ । इसी कारण उसे नींद भी नहीं आती थी ॥५३॥ लोकमें जो भी श्रेष्ठ जिनेन्द्रदेवके आयतन (जिनभवन आदि ) थे उनकी वन्दनाके लिए वह निरन्तर घूमा करता था। ठीक है-सज्जन मनुष्य धर्मकार्यमें अनर्थके कारणभूत आलसको कभी नहीं किया करते हैं-वे धर्मकार्यमें सदा ही सावधान रहते हैं ॥५४॥ किसी समय वह मनोवेग कृत्रिम और अकृत्रिमके भेदसे भेदको प्राप्त हुई समस्त जिनप्रतिमाओंकी वन्दना करके वापिस आ रहा था। उस समय उसका विमान अकस्मात् आकाशमें रुक गया ॥५५|| तब यह मनोवेग अपने विमानको निश्चल देखकर मनमें कुछ व्याकुल होता हुआ विचार करने लगा कि मेरे इस विमानको क्या किसी शत्रुने रोक दिया है अथवा वह किसी उत्कृष्ट ऋद्धिके धारी मुनिके प्रभावसे रुक गया है ॥५६।। ___इस प्रकार विमानके रुक जानेके कारणके जाननेकी इच्छासे उसने नीचे पृथिवीकी ओर देखा। वहाँ उसे नगरों, खानों, गाँवों और वनादिकोंसे रमणीय मालव नामका देश दिखाई दिया ॥५॥ ५४) इनर्थभूतम् । ५५) ड इ अकृत्रिमाः कृत्रिम । ५६) इ विमानमेघः । ५७) अ विबोधकामः; क ड इ वसुधां समस्तां; इ ग्रामविशेषरम्यं ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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