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________________ धर्मपरीक्षा-१९ ३१३ साक्षीकृत्य व्रतग्राही व्यभिचारं न गच्छति। व्यवहारीव येनेदं तेन ग्राह्यं ससाक्षिकम् ॥७ रोप्यमाणं न जीवेषु सम्यक्त्वेन विना व्रतम् । सफलं जायते सस्य केदारेष्विव वारिणा ॥८ सम्यक्त्वसहित जीवे निश्चलं भवति व्रतम् । सगर्तपूरिते देशे देववेश्मेव दुर्धरम् ॥९ जीवाजीवादितत्त्वानां भाषितानां जिनेशिना । श्रद्धानं कथ्यते सद्धिः सम्यक्त्वं व्रतपोषकम् ॥१० दोषैः शङ्काविभिर्मुक्त संवेगाद्यगुणैयुतम् । दघतो दर्शनं पूतं फलवज्जायते व्रतम् ॥११ ९) १. पायाविना चैत्यालयं दृढं यथा न भवति । १०) १. पुष्टिकरणम् । ११) १. निःशङ्का १, निकाङ्क्षा २, निर्विचिकित्सा ३, अमूढता ४, स्थितीकरणं ५, वात्सल्यालंकृतम् ६, उपगूहनम् ७, प्रभावना ८। कारण यह कि जिस प्रकार किसीको साक्षी करके व्यवहार करनेवाला (व्यापारी) मनुष्य कभी दूषणको प्राप्त नहीं होता है उसी प्रकार देव-गुरु आदिको साक्षी करके व्रत ग्रहण करनेवाला मनुष्य भी कभी दूषणको प्राप्त नहीं होता है-ग्रहण किये हुए उस व्रतसे भ्रष्ट नहीं होता है । इसीलिए व्रतको साक्षीपूर्वक ही ग्रहण करना चाहिए ॥७॥ प्राणियों में यदि सम्यग्दर्शनके बिना व्रतका रोपण किया जाता है तो वह इस प्रकारसे सफल-उत्तम परिणामवाला नहीं होता है जिस प्रकार कि क्यारियों में पानीके बिना रोपित किया गया-बोया गया-धान्य सफल-फलवाला नहीं होता है ।।८।। ___ इसके विपरीत जो प्राणी उस सम्यग्दर्शनसे विभूषित है उसमें आरोपित किया गया वही व्रत इस प्रकारसे स्थिर होता है जिस प्रकार कि गड्ढायुक्त परिपूर्ण किये गये देशमेंनींवको खोदकर फिर विधिपूर्वक परिपूर्ण किये गये पृथिवीप्रदेशमें-निर्मापित किया गया देवालय स्थिर होता है ॥९॥ जिन भगवानके द्वारा उपदिष्ट जीव व अजीव आदि तत्त्वोंका जो यथावत् श्रद्धान होता है वह सत्पुरुषोंके द्वारा व्रतोंको पुष्ट करनेवाला सम्यग्दर्शन कहा जाता है ॥१०॥ ___ जो भव्य जीव शंका आदि दोषोंसे रहित और संवेग आदि गुणोंसे सहित पवित्र सम्यग्दर्शनको धारण करता है उसीका व्रत धारण करना सफल होता है ॥११॥ ९) अ क ड इ निश्चलीभवति ; क संवेगादिगुण । ब क सगर्तपूरके । १०) ड सम्यक्त्वव्रत। ११) ब दधाना;
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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