SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९८ अमितगतिविरचिता कन्ये नन्दासुनन्दाख्ये कच्छस्य नृपतेषा। जिने नियोजयामास नीतिकीर्ती इवामले ॥२४ एतयोः कान्तयोस्तस्य पुत्राणामभवच्छतम् । सब्राह्मीसुन्दरीकन्यं मानसाह्लादनक्षमम् ॥२५ . जिनः कल्पद्रुमापाये लोकानामाकुलात्मनाम् । दिदेश षक्रियाः पृष्टो जीवनस्थितिकारिणीः ॥२६ ततो नीलंजसां देवो' नृत्यन्ती देवकामिनीम् । विलीनां सहसा दृष्ट्वा चिन्तयामास मानसे ॥२७ यथैषा पश्यतो नष्टा शम्पेव त्रिदशाङ्गना। तथा नश्यति निःशेषा लक्ष्मीर्मोहनिकारिणी ॥२८. सलिलं मृगतृष्णायां नभःपुर्या महाजनः। प्राप्यते न पुनः सौख्यं संसारे सारजिते ॥२९ " २७) १. आदीश्वरः। २८) १. अस्माकम् । जन्म लेनेके पश्चात् जब भगवान् ऋषभनाथ विवाहके योग्य हुए तब इन्द्रने उनके लिए नीति और कीर्तिके समान नन्दा और सुनन्दा नामकी क्रमसे कच्छ और महाकच्छ राजाओंकी पुत्रियोंकी योजना की-उनका उक्त दोनों कन्याओंके साथ विवाह सम्पन्न करा दिया ॥२४॥ . इन दोनों पत्नियोंसे उनके ब्राह्मी और सुन्दरी नामकी दो कन्याओंके साथ सौ पुत्र उत्पन्न हुए । ये सब उनके मनको प्रमुदित करते थे ॥२५॥ कल्पवृक्षोंके नष्ट हो जानेपर जब प्रजाजन व्याकुलताको प्राप्त हुए तब उनके द्वारा पूछे जानेपर भगवान आदि देवने उन्हें जीवनकी स्थिरताकी कारणभूत असि-मषी आदिरूप छह क्रियाओंका उपदेश दिया था ॥२६॥ तत्पश्चात् सभाभवनमें नृत्य करती हुई नीलंजसा नामक अप्सराको अकस्मात् मरणको प्राप्त होती हुई देखकर भगवान्ने अपने मनमें इस प्रकार विचार किया ॥२७॥ जिस प्रकारसे यह देवांगना देखते ही देखते बिजलीके समान नष्ट हो गयी उसी प्रकारसे प्राणियोंको मोहित करनेवाली यह समस्त लक्ष्मी भी नष्ट होनेवाली है ।।२८॥ कदाचित् बालूमें पानी और आकाशपुरीमें महापुरुष भले ही प्राप्त हो जावें, परन्तु इस असार संसारमें कभी सुख नहीं प्राप्त हो सकता है ॥२९॥ २४) अ जिनेन योजया ....नीतिः कीर्तेर्यथा वृषा। २५) अ सैकं ब्राह्मीसुन्दरीकं, ब सुन्दरीकन्या, क कन्याम् । २६) क ड द्रुमप्रायो; अ जीवितस्थिति । २७) अ चिन्तया मानसे तदा। २८) अ ब क पश्यताम्; इ र्मोहविकारिणी।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy