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________________ २४ अमितगतिविरचिता आत्मा प्रवर्तमानो ऽपि यत्र तत्र न बध्यते। बन्धबुद्धिमकुर्वाणो नेदं वचनमञ्चितम ॥५१ कथं निर्बुद्धिको जीवो यत्र तत्र प्रवर्तते। प्रवृत्तिनं मया दृष्टा पर्वतानां कदाचन ॥५२ मृत्युबुद्धिमकुर्वाणो वर्तमानो महाविषे। जायते तरसा किं न प्राणी प्राणविजितः ॥५३ यद्यात्मा सर्वथा शुद्धो ध्यानाम्यासेन किं तवा। शुद्ध प्रवर्तते कोऽपि शोधनाय न काञ्चने ॥५४ नात्मनः साध्यते शुद्धिर्ज्ञानेनैवे कदाचन । न भैषज्यावबोधेने व्याधिः कापि निहन्यते ॥१५ ध्यानं श्वासनिरोधेन दुधियः साधयन्ति ये। आकाशकुसुमैनूनं शेखरं रचयन्ति ते ॥५६ ५२) १. अभिप्रायरहितः। ५३) १. सेव्यमानः । ५५) १. केवलेन । २. ज्ञातेन । ___ जीव जहाँ-तहाँ प्रवृत्ति करता हुआ भी बन्धबुद्धिसे रहित होनेके कारण कर्मसे सम्बद्ध नहीं होता है, यह जो कहा जाता है वह योग्य नहीं है। इसका कारण यह है कि यदि वह बुद्धिसे विहीन है तो फिर वह जहाँ-तहाँ प्रवृत्त ही कैसे हो सकता है ? नहीं प्रवृत्त हो सकता है, क्योंकि, बुद्धिविहीन पर्वतोंकी मैंने-किसीने भी-कभी प्रवृत्ति ( गमनागमनादि ) नहीं देखी है ।।५१-५२॥ मृत्युका विचार न करके यदि कोई प्राणी भयानक विषके सेवनमें प्रवृत्त होता है तो क्या वह शीघ्र ही प्राणोंसे रहित नहीं हो जाता है ? अवश्य हो जाता है ।।५३।। ___ यदि आत्मा सर्वथा शुद्ध है तो फिर ध्यानके अभ्याससे उसे क्या प्रयोजन रहता है ? कुछ भी नहीं-वह निरर्थक ही सिद्ध होता है। कारण कि कोई भी बुद्धिमान शुद्ध सुवर्णके संशोधनमें प्रवृत्त नहीं होता है ॥५४॥ केवल ज्ञानमात्र से ही कभी आत्माकी शुद्धि नहीं की जा सकती है। ठीक है, क्योंकि, औषधके ज्ञान मात्रसे ही कहीं रोगको नष्ट नहीं किया जाता है। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार औषधको जानकर उसका सेवन करनेसे रोग नष्ट किया जाता है उसी प्रकार आत्माके स्वरूपको जानकर तपश्चरणादिके द्वारा उसके संसारपरिभ्रमणरूप रोगको नष्ट किया जाता है ।।५५॥ जो अज्ञानी जन श्वासके निरोधसे-प्राणायामादिसे-ध्यानको सिद्ध करते हैं वे निश्चयसे आकाशफूलोंके द्वारा सिरकी मालाको रचते हैं ॥५६॥ ५१) ड यत्र यत्र । ५२) इ कथंचन । ५५) व ज्यावघोषेण...व्याधिः कोऽपि । ५६) अ ध्यानं श्वासा।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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