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अमितगतिविरचिता एकीकृत्य कथं स्कन्दः षट्खण्डो ऽपि विनिर्मितः। प्रतीयते न मे योगश्छिन्नयोर्धदेहयोः ॥८७ अथ षड्वदनो देवः षोढाप्येकत्वमश्नुते । तदयुक्तं यतो नार्यों देवः संपद्यते कुतः ॥८८ निरस्ताशेषरक्तादिमलायां देवयोषिति । शिलायामिव गर्भस्य संभवः कथ्यतां कथम् ॥८९ द्विजैरुक्तमिदं सर्व सूनृतं भद्र भाषितम् । परं कथं फलमूना जग्धैः पूर्ण तवोदरम् ॥९० ततो बभाषे सितवस्त्रधारी भुक्तेषु तप्यन्ति कथं द्विजेषु । पितामहाद्याः पितरो व्यतीता देहो न मे मूनि कथं समीपे ॥९१ दग्धा' विपन्नाश्चिरकालजातास्तप्यन्ति भुक्तेषु परेषु यत्र ।
आसन्नवर्ती मम तत्र कायो न विद्यमानः किमतो विचित्रम् ॥९२ ८८) १. कार्तिकेयः। ९२) १. मृताः । २. अतःपरम् ।
छह खण्डोंमें विभक्त कार्तिकेयका उन छह खण्डोंको एक करके निर्माण कैसे हुआ ? उन छह खण्डोंके जुड़नेमें जब अविश्वास नहीं किया जा सकता है तब मेरे शिर और शेष शरीरके जुड़नेमें विश्वास क्यों नहीं किया जाता है ? ॥८॥
यदि इसपर यह कहा जाये कि वह कार्तिकेय तो देव है, इसलिए उसके छह खण्डोंमें विभक्त होनेपर भी एकता हो सकती है तो वह भी योग्य नहीं है, क्योंकि, वैसी अवस्थामें मनुष्य-स्त्रीसे देवकी उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? वह असम्भव है ॥८॥
यदि उसका देवीसे उत्पन्न होना माना जाय तो वह भी सम्भव नहीं है, क्योंकि, देवीका शरीर रुधिर आदि सब प्रकारके मलसे रहित होता है, अतएव जिस प्रकार शिला (चट्टान) के ऊपर गर्भाधानकी सम्भावना नहीं है उसी प्रकार देव-स्त्रीके भी उस गर्भकी सम्भावना नहीं की जा सकती है । यदि वह उसके सम्भव है तो कैसे, यह मुझे कहिए ।।८।।
___ मनोवेगके इस कथनको सुनकर ब्राह्मण बोले कि हे भद्र! तुम्हारा यह सब कहना सत्य है, परन्तु यह कहो कि तुम्हारे सिरके द्वारा फलोंके खानेसे उदरकी पूर्णता कैसे हो गयी ॥२०॥
इसपर शुभ्र वस्त्रका धारक वह मनोवेग बोला कि ब्राह्मणोंके भोजन कर लेनेपर मरणको प्राप्त हुए पितामह (आजा) आदि पूर्वज कैसे तृप्तिको प्राप्त होते हैं और मेरे सिरके द्वारा फलोंका भक्षण करनेपर समीपमें ही स्थित मेरा उदर क्यों नहीं तृप्तिको प्राप्त हो सकता है, इसका उत्तर आप मुझे दें ॥११॥
जिनको जन्मे हुए दीर्घकाल बीत गया व जो मृत्युको प्राप्त होकर भस्मीभूत हो चुके हैं वे जहाँ दूसरोंके भोजन कर लेनेपर तृप्तिको प्राप्त होते हैं वहाँ मेरा समीपवर्ती विद्यमान शरीर तृप्तिको नहीं प्राप्त हो सकता है, क्या इससे भी और कोई विचित्र बात हो सकती है ? ॥१२॥ ८७) ब क ड ह षट्खण्डानि । ८८) ततो for यतो । ८९) अ निरक्ताशेष । ९१) म स कचौधधारी.... द्विजेभ्यः; अ क ड समीपः। ९२) ब क किमतोऽपि ।