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________________ २४६ अमितगतिविरचिता तेन तां' सेवमानेन कुमारी विनसप्तकम् । यूनो निरोपितो गर्भः कोशो नोतिमिवानघाम् ॥३४ अयासीनिवतो भूत्वा हित्वा तत्रैव तामसौ। सिद्धे मनीषिते कृत्ये निवृति लभते न कः ॥३५ ज्ञात्वा गर्भवती मात्रा निभृतं सा प्रसाविता। गुह्यं छादयते सर्वो गृहभूषणभीलुकः ॥३६ मञ्जूषायां विनिक्षिप्य देवनद्यां प्रवाहितः । तदीयस्तनयो मात्रा गृहदूषणभीतया ॥३७ गङ्गाया नीयमानां तामावित्यो जगृहे मपः । संपत्तिमिव दुर्नीत्या दृष्टवा चम्पापुरीपतिः ॥३८ तस्या मध्ये दवसिौ बालं पावनलक्षणम् । सरस्वत्या इवानिन्धमयं विद्वज्जनार्चितम् ॥३९ ३४) १. कुन्तीम् । २. यौवनेन पाण्डुना । ३. भंडारः । ३५) १. सुखी । २. मुक्त्वा ; क त्यक्त्वा । ३६) १. प्रच्छन्नम् । २. क गुह्यस्थानं प्रति रक्षिता सती पुत्रमसूत । इस प्रकार उस तरुण पाण्डुने सात दिन तक उसका सम्भोग करते हुए गर्भको इस प्रकारसे स्थापित कर दिया जिस प्रकार कि खजाना निर्दोष नीतिको स्थापित करता है ॥३४॥ तत्पश्चात् उसने सुखी होकर उसको वहींपर छोड़ा और स्वयं वापस आ गया। ठीक है--अभीष्ट कार्यके सिद्ध हो जानेपर भला कौन सुखको नहीं प्राप्त होता है ? अर्थात् समीहितके सिद्ध हो जानेपर सब ही जन सुखका अनुभव किया करते हैं ॥३५।। इधर कुन्ती की माताको जब यह ज्ञात हुआ कि वह गर्भवती है तब उसने अत्यन्त गुप्तरूपसे प्रसूति करायी। सो ठीक है-घरके कलंकसे भयभीत होकर सब ही जन गोपनीय बातको छिपाया करते हैं ॥३६॥ उस समय कुन्तीकी माताने इस गृह-कलंकसे भयभीत होकर उसके पुत्रको एक पेटीमें रखा और गंगा नदीमें प्रवाहित कर दिया ॥३७॥ इस प्रकार गंगाके द्वारा ले जायी गयी उस पेटीको देखकर चम्पापुरके अधिपति आदित्य राजाने उसे दूषित नीतिसे लायी गई सम्पत्तिके समान ग्रहण कर लिया ॥३८।। तब उसने उस पेटीके भीतर विद्वान् जनोंसे पूजित सरस्वतीके मध्यगत निर्दोष अर्थके समान उत्तम लक्षणोंसे परिपूर्ण एक बालकको देखा ॥३९॥ सो ठीक है--अभीष्ट क ३४) तेनंताम; ब क ड प्ररोपितो for निरोपितो। ३५) ब ब क आयासीत्; म निवृत्तिम् । १६)भब गर्भवतीम् । ३८) अ गङ्गायाः ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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