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धर्मपरीक्षा-१५ मण्डूको मानुषं सूते केनेवं प्रतिपद्यते। न शालितो मया दृष्टा जायमाना हि कोद्रवाः ॥६ शुक्रभक्षणमात्रेण यद्यपत्यं प्रजायते । । किं कृत्यं धवसंगेने तदापत्याय योषिताम् ॥७ रेतःस्पर्शनमात्रेण जायन्ते यदि सनवः । बीजसंगममात्रेण दत्ते सस्यं तदा धरा ॥८ आघ्राते कमले गर्भः शुक्राक्ते यदि जायते । भक्तमिश्रे तदा पात्रे तृप्तिः केन निवार्यते ॥९ कथं विज्ञाय मण्डको कन्यां धत्ते ऽब्जिनीदले ।
भेकानामीदृशं ज्ञानं कदा केनोपलभ्यते ॥१० ७) १. पुरुषसंगेन । ८) १. शुक्र । २. अन्नम् । १०) १. मन्यते प्राप्यते।
__ मेंढकी मनुष्य स्त्रीको उत्पन्न करती है, इसे भला कौन विचारशील स्वीकार कर सकता है ? कोई नहीं। कारण कि मैने कभी शालि धानसे कोदों उत्पन्न होते हुए नहीं देखे ॥६॥
___ यदि वीर्यके भक्षणमात्रसे सन्तान उत्पन्न हो सकती है तो फिर सन्तानोत्पत्तिके लिए स्त्रियोंको पुरुषके संयोगकी आवश्यकता ही क्या रह जाती है ? वह व्यर्थ सिद्ध होता है ॥७॥
- यदि वीर्यके स्पर्शमात्रसे ही पुत्र उत्पन्न हो जाते हैं तो फिर पृथिवी बीजके संसर्गमात्रसे ही धान्यको दे सकती है। सो ऐसा सम्भव नहीं है, किन्तु बीजके आत्मसात् कर लेनेपर ही पृथिवी धान्यको उत्पन्न करती देखी जाती है, न कि उसके स्पर्श मात्रसे ही। यही बात प्रकृतमें जाननी चाहिए ॥८॥
वीर्यसे लिप्त कमलके सूंघनेपर यदि गर्भ होता है तो फिर भोजनसे परिपूर्ण पात्र (थाली आदि) के सूंघनेपर तृप्तिको कौन रोक सकता है ? कोई नहीं। जिस प्रकार वीययुक्त कमलके सूंघनेमात्रसे गर्भ हो जाता है उसी प्रकार भोजनयुक्त पात्रके सूंघनेपर भोजनविषयक तृप्ति होकर भूख शान्त हो जानी चाहिए । परन्तु ऐसा सम्भव नहीं है ॥९॥
___ मेंढकी कन्याको जान करके उसे कमलके पत्रपर कैसे रख सकती है ? नहीं रख सकती है। क्योंकि, मेंढकोंके इस प्रकारके ज्ञानको कब और किसने देखा है ? अर्थात् मेंढक जातिमें इस प्रकारका ज्ञान कभी किसीके द्वारा नहीं देखा गया है ॥१०॥
६) ब क ड मानुषीम् । ७) ब यदपत्यम् ।