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________________ २३४ अमितगतिविरचिता aar' तया तस्यै कौपीनं शुक्रकश्मलम् । परिधाय कृतं स्नानं कदाचिद्यौवनोदये ॥७३ जातं तस्यास्ततो गर्भं विज्ञाय निजवोयंजम् । तं मुनिः स्तम्भयामास कन्यादूषणशङ्कितः ॥७४ वर्षसहस्राणि गर्भो ऽसौ निश्चलीकृतः । अतिष्ठदुदरे तस्याः कुर्वाणः पीडनं परम् ॥७५ परिणीता ततो भव्या रावणेन महात्मना । वितीर्णा मुनिनासूत पुत्रमिन्द्रजिताभिधम् ॥७६ पूर्वमिन्द्रजिते जाते सप्तवर्ष सहस्रकैः । बभूव रावणः पश्चात् ख्यातो मन्दोदरीपतिः ॥७७ सप्तवर्षसहस्राणि कथमिन्द्रजितः स्थितः । सवित्रीजठरे नाहं वर्षद्वादशकं कथम् ॥७८ ७३) १. रजस्वलया कन्यया । २. मयस्य । ७४) १. गर्भम् । किसी समय वह यौवन अवस्थाके प्रादुर्भूत होनेपर रजस्वला हुई । उस समय उसने वीर्य से मलिन पिताके लंगोटको पहनकर स्नान किया। इससे उसके गर्भाधान हो गया । तब मय मुनिने उस गर्भको अपने वीर्यसे उत्पन्न जानकर कन्याप्रसंगरूप लोकनिन्दाके भयसे उसे स्तम्भित कर दिया- वहींपर स्थिर कर दिया ।।७३-७४॥ इस प्रकार मुनिके द्वारा उस गर्भको सात हजार वर्ष तक निश्चल कर देने पर वह कन्याको केवल पीड़ा उत्पन्न करता हुआ तब तक उसके उदरमें ही अवस्थित रहा ||७५ || तत्पश्चात् ऋषिने उस सुन्दर कन्याको अतिशय शोभासे सम्पन्न रावणके लिए प्रदान कर दिया, जिसे उसने स्वीकार कर लिया। तब उसने इन्द्रजित् नामक पुत्रको जन्म दिया ॥ ७६ ॥ पूर्व में जब इन्द्रजित् उत्पन्न हो चुका तब कहीं सात हजार वर्षोंके पश्चात् रावण मन्दोदरीके पतिस्वरूपसे प्रसिद्ध हुआ ॥७७॥ इस प्रकार हे विद्वान् विप्रो ! यह कहिए कि वह इन्द्रजित् सात हजार वर्ष तक कैसे माताके उदरमें अवस्थित रहा और मैं केवल बारह वर्ष तक ही क्यों नहीं माताके उदरमें रह सकता था ॥७८॥ : ७३) ड ततः for कृतम् । ७४) अ निजबीजनम् । ७६) अ ब महाश्रिया । ७७ ) ड जातो for ख्यातो ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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