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________________ धर्मपरीक्षा-१४ . २३१ वचनोच्चारमात्रेण कल्मषं यदि जायते। तदोष्णो वह्निरित्युक्ते वचनं किं न वह्यते ॥५३ आचक्ष्व त्वं पुराणार्थ यथावृत्तमतिः । वयं नैयायिकाः सर्वे गृह्णीमो न्यायभाषितम् ॥५४ ततः स्वपरशास्त्रज्ञो व्याचष्टे गगनायनः । यद्येवं श्रूयतां विप्राः स्पष्टयामि मनोगतम् ॥५५ एकत्र सुप्तयोर्योर्भागीरथ्याख्ययोद्वयोः । संपन्नगर्भयोः पुत्रः ख्यातो ऽजनि भगीरथिः ॥५६ यदि स्त्रीस्पर्शमात्रेण गर्भः संभवति स्त्रियाः । मातुर्मे न कथं जातः पुरुषस्पर्शतस्तदा ॥५७ धृतराष्ट्राय गान्धारी द्विमासे किल दास्यते। तावद्रजस्वला जाता पूर्व सा संप्रदानतः ॥५८ चतुर्थे वासरे स्नात्वा पनसालिङ्गने कृते। वर्धयन्नुदरं तस्या गर्भो ऽजनि महाभरः ॥५९ ५४) १. कथय । २. न्यायकाः । ५५) १. मनोवेगः । ५८) १. विवाहात्। यदि वचनके उच्चारणमात्रसे ही दोषकी सम्भावना होती तो फिर 'अग्नि उष्ण है' ऐसा कहनेपर मुँह क्यों नहीं जल जाता है ? ॥५३॥ - इसलिए हे भद्र ! यदि हमारे पुराणों में कहीं वस्तुतः कोई दोष है तो उसका केवल वचन मात्रसे उल्लेख न करके जहाँ वह दोष विद्यमान हो उस पुराणके अर्थको तुम हमें निर्भयतापूर्वक कहो। हम सब नैयायिक हैं-न्यायका अनुसरण करनेवाले हैं, इसीलिए न्यायोचित भाषणको ग्रहण किया करते हैं ॥५४॥ इसपर अपने व दूसरोंके आगमके रहस्यको जाननेवाले उस मनोवेग विद्याधरने कहा कि यदि आप न्याय्य वचनोंके ग्रहण करनेवाले हैं तो फिर मैं अपने हृदयगत अभिप्रायको कहता हूँ, उसे सुनिए ॥५५॥ भागीरथी नामकी दो स्त्रियाँ एक स्थानपर सोयी हुई थीं, इससे उनके गर्भाधान होकर प्रसिद्ध भगीरथ नामका पुत्र उत्पन्न हुआ, यह आपके पुराणों में वर्णित है ॥५६॥ ___ यदि स्त्रीके स्पर्शमात्रसे अन्य स्त्रीके गर्भस्थिति हो सकती है तो फिर मेरी माताके पुरुषके स्पर्शसे गर्भस्थिति क्यों नहीं हो सकती है, यह आप ही बतलायें ॥१७॥ धृतराष्ट्र के लिए गान्धारी दो मासमें दी जानेवाली थी, सो उसे देनेके पूर्व ही वह रजस्वला हो गयी। तब उसने चौथे दिन स्नान करके पनस वृक्षका आलिंगन किया। इससे उसके अतिशय भारसे संयुक्त गर्भ रह गया व पेट बढ़ने लगा ॥५८-५९॥ ५३) इ दह्यति । ५५) क आचष्टे, ड व्याचष्ट । ५६) इ भगीरथः । ५९) व ज्ञात्वा for स्नात्वा.... वर्धयन्युदरम्।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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