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________________ धर्मपरीक्षा - १३ कथं विधीयते सृष्टिरशरीरेण वेधसा । विधानेनाशरीरेण शरीरं क्रियते कथम् ॥ ८३ विधाय भुवनं सवं स्वयं नाशयतो विधेः । लोक हत्या महापापा भवन्ती केन वार्यते ॥८४ कृतकृत्यस्य शुद्धस्य नित्यस्य परमात्मनः । अमूर्तस्याखिलज्ञस्य कि लोककरणे फलम् ॥८५ विनाश्य करणीयस्य क्रियते कि विनाशनम् । कृत्वा विनाशनीयस्य जगतः करणेन किम् ॥८६ पूर्वापरविरुद्धानि पुराणान्यखिलानि वः । श्रद्धीयन्ते कथं विप्रा न्यायनिष्ठेर्मनीषिभिः ॥८७ दृष्ट्वेति गदितः खेटः क्षितिदेवाननुत्तरान् । नित्योपवनं गत्वा सुहृदं न्यगदीदिति ॥८८ ८३) १. क ब्रह्मणा । २. विधानतः । ८६) १. जगतः । २१९ इसके अतिरिक्त जब ब्रह्मा शरीरसे रहित है तब वह शरीरके बिना सृष्टिका निर्माण कैसे करता है ? इसपर यदि यह कहा जाये कि वह शरीर धारण करके ही सृष्टिका निर्माण करता है तो पुनः वही प्रश्न उपस्थित होता है कि वह पूर्व में शरीर से रहित होकर अपने उ शरीरका भी निर्माण कैसे करता है ||८३ ॥ दूसरे, समस्त जगत्को रचकर जब वह स्वयं उसको नष्ट भी करता है तब ऐसा करते हुए महान् पापको उत्पन्न करनेवाली जो लोकहत्या होगी उसे कौन रोक सकता है ? उसका प्रसंग अनिवार्य होगा ॥ ८४ ॥ साथमें यह भी विचारणीय है कि जब वह परमात्मा कृतार्थ, शुद्ध, नित्य, अमूर्तिक और सर्वज्ञ है तब उसे उस सृष्टि रचनासे प्रयोजन ही क्या है ॥८५॥ लोकको नष्ट करके यदि उसकी पुनः रचना करना अभीष्ट है तो फिर उसका विनाश ही क्यों किया जाता है ? इसी प्रकार यदि रचना करके उसका विनाश करना आवश्यक है तो फिर उसकी रचना ही क्यों की जाती है— उस अवस्थामें उसकी रचना निरर्थक सिद्ध होती है ॥८६॥ इस प्रकार हे ब्राह्मणो ! आपके सब पुराण पूर्वापरविरुद्ध कथन करनेवाले हैं। ऐसी अवस्थामें जो विद्वान् न्यायनिष्ठ हैं वे उनपर कैसे विश्वास करते हैं, यह विचारणीय 112011 इस प्रकार मनोवेग विद्याधरके कहनेपर जब वे विद्वान् ब्राह्मण कुछ भी उत्तर नहीं दे सके तब वह उन्हें निरुत्तर देखकर वहाँसे चल दिया और उपवनमें जा पहुँचा। वहाँ वह अपने मित्र पवनवेग से इस प्रकार बोला ॥८८॥ ८७) अ इ च for वः । ८८) ड इ गदिते खेटे; अदेवान्निरुत्तरान् ....स्वमित्रं निगद ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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