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________________ २०७ धर्मपरीक्षा-१३ ततः खेटो ऽवदद्वाणविवरेणाप्यणीयसा'। दशकोटिबलोपेतो यद्यायाति फणीश्वरः ॥१२ . तेवानी न कथं हस्ती विवरण कमण्डलो। निर्गच्छति द्विजा ब्रूत त्यक्त्वा मत्सरमञ्जसा ॥१३ भवतामागमः सत्यो ने पुनर्वचनं मम। पक्षपातं विहायैकं परमत्र न कारणम् ॥१४ 'भूमिदेवैस्ततो ऽवाचि कुञ्जरः कुण्डिकोवरे । कथं माति कथं भग्नो न भिण्डो हस्तिभारतः ॥१५ शरीरे निर्गत पौलो कुण्डिकाच्छिद्रतो ऽखिले। विलग्य निबिडेस्तौ पुच्छवालः कथं स्थितः ॥१६ श्रद्दध्महे वचो नेदं त्वदीयं भव सर्वथा। नभश्चरस्ततो ऽवावीत् सत्यमेतदपि स्फुटम् ॥१७ पीतमङ्गुष्ठमात्रेण सर्व सागरजीवनम् । अगस्त्यमुनिना विप्राः श्रूयते भवदागमे ॥१८ १२) १. क सूक्ष्मेण । १३) १. तर्हि । १४) १. सत्यम् । १५) १. द्विजैः। १६) १. हस्तिनः; क कुञ्जरस्य । २. एकदृढः । ३. छिद्रे । १७) १. मन्यामहे । इसपर मनोवेगने कहा कि हे विद्वान् विप्रो! जब अतिशय छोटे भी बाणके छेदसे दस करोड़ सेनाके साथ पातालसे वह शेषनाग यहाँ आ सकता है तब भला उस कमण्डलुके छेदसे हाथी क्यों नहीं निकल सकता है, यह आप लोग हमें द्वेषबुद्धिको छोड़कर शीघ्र बतलायें ॥१२-१३॥ इस प्रकारका आपका आगम तो सत्य है, किन्तु उपर्युक्त मेरा कथन सत्य नहीं है; इसका कारण एक मात्र पक्षपातको छोड़कर दूसरा कोई नहीं है ॥१४॥ ___ यह सुनकर उन ब्राह्मणोंने कहा कि कमण्डलुके भीतर हाथी कैसे समा सकता है तथा उस हाथीके बोझसे निर्बल भिण्डीका पौधा नष्ट कैसे नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त कमण्डलुके छेदसे हाथीके समस्त शरीरके निकल जानेपर भी उसके भीतर उसकी पूछका एक बाल दृढ़तापूर्वक चिपककर कैसे स्थित रह गयां ॥१५-१६।। हे भद्र ! इस प्रकारके तेरे उस असम्भव कथनपर हम सर्वथा विश्वास नहीं कर सकते हैं। ब्राह्मणों द्वारा ऐसा कहनेपर मनोवेग विद्याधर बोला कि यह भी स्पष्टतया सत्य १२) अ ड यदायाति । १५) क इ भूमिदेवो ततोवाच । १६) इ पीने; अबालं। १७) अ ब क इ श्रद्धधाहे । १८) ब आगस्त्य ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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