SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०१ धर्मपरीक्षा-१२ पुरे सन्ति परत्रापि साधवो ऽध्यापकाः स्फुटम् । . चिन्तयित्वेत्यहं नष्ट्वा ततो यातः पुरान्तरम् ॥८० मवाम्बुधाराद्रितभूतलो मया विलोकितः संमुखमागतो गजः। पुरान्तराले विशतात्र जङ्गमो' महोदयः शैल इवोरनिझरः॥८१ प्रसार्य हस्तं' स्थिरकर्णवालेषिविभीषणो लवितयन्त्रियन्त्रणः । स धावितो मामवलोक्य सामः सविग्रहो मृत्युरिवानिवारणः ॥८२ अनीक्षमाणः शरणं ततः परं निवेश्ये भिण्डे सरले कमण्डलुम् । अविक्षमाकम्पितसर्वविग्रहः पलायनं कर्तुमपारयेनहम् ॥८३ दैवात्समुत्पन्नमतिस्तदाहं नाले प्रविष्टः खलु तस्य भीतेः। अस्माद्विमुक्तो ऽस्म्यधुनेति हृष्टस्तिष्ठामि यावत्क्षणमत्र तावत् ॥८४ ८०) १. गतः। ८१) १. गमागमनकृतः। ८२) १. सुंढिं । २. पूछडं । ३. पोता (?)। ४. आंकुश । ५. प्रति । ६. हस्ती। ८३) १. अन्यम् । २. अवलम्ब्य । ३. विप्रवशेष प्रविष्ट (?) । ४. असमर्थः । ___ तब दूसरे नगरमें भी तो शिक्षा देनेवाले साधु विद्यमान हैं, ऐसा सोचकर मैं वहाँसे भागकर दूसरे नगर में जा पहुँचा ॥८॥ वहाँ मैंने नगरके भीतर प्रवेश करते समय बीचमें अपने मदजलकी धारासे पृथिवीपृष्ठको गीला करते हुए एक हाथीको देखा। सामने आता हुआ वह हाथी मुझे विशाल झरनेसे संयुक्त ऐसे चलते-फिरते हुए ऊँचे पर्वतके समान प्रतीत हो रहा था ॥१॥ स्थिर कान व पूँछसे संयुक्त वह अतिशय भयानक हाथी महावतके नियन्त्रणको लाँघकर-उसके वशमें न रहकर-अपनी सूंड़को फैलाते हुए मेरी ओर इस प्रकारसे दौड़ा जिस प्रकार मानो अनिवार्य मृत्यु ही सामने आ रही हो ॥८२॥ . यह देखकर मेरा समस्त शरीर कम्पित हो उठा और मैं भागनेके लिए सर्वथा असमर्थ हो गया। तब आत्मरक्षाका कोई दूसरा उपाय न देखकर मैंने कमण्डलुकी शरण लेते हुए उसे एक भिण्डीके पौधेके ऊपर रखा और उसके भीतर प्रविष्ट हो गया ।।८३॥ . ___ उस समय नसीबसे मुझे विचार सूझकर मैं उसकी भीतिसे कमण्डलुके टोंटीमें घुस गया और 'उससे अब छुट गया' इस आनन्दमें जो मैं क्षणभर रहता तो उधर विरुद्ध ८१) क शैल इवाम्बु, ड इ शैलमिवाम्बु । ८३) इ माणं; अ भिण्डे शरणं; ड इ अवेक्ष । ८४) भवर om. this verses २६
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy