SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९९ धर्मपरीक्षा-१२ विचित्रवाद्यसंकोणं संगीतं मन्त्रिणा ततः। वानराः शिक्षिता रम्यं वशीकृत्य मनीषितम् ॥६७ ततस्तद्दर्शितं राजस्तेनोधानविवर्तिनः । एकाकिनः सतो भव्यं चित्तव्यामोहकारणम् ॥६८ यावद्दर्शयते राजा भट्टानामिदमादृतः । संहृत्य वानरा गीतं तावन्नष्टा दिशो दश ॥६९ मन्त्रिणा गदिते तत्र भूतेनाप्राहि पार्थिवः। भट्टा निश्चितमित्युक्त्वा बन्धयामास तं दृढम् ॥७० तदेव भाषते भूयो यदा बद्धो ऽपि पार्थिवः । हसित्वा तुष्टचित्तेन मन्त्रिणा मोचितस्तदा ॥७१ यथा वानरसंगीतं त्वयादशि वने विभो। तरन्ती सलिले दृष्टा सा शिलापि मया तथा ॥७२ ६८) १. मन्त्रिणा। ७०) १. सुभटा। २. राजानम् । ७१) १. यत् मन्त्रिणोक्तं मया असत्यं कथितम् । - ~ फिर मन्त्रीने अपने अभीष्टके अनुसार राजासे बदला लेनेकी इच्छासे-कुछ बन्दरोंको वशमें करके उन्हें अनेक प्रकारके बाजोंसे व्याप्त सुन्दर संगीत सिखाया ॥६॥ तत्पश्चात् उसने मनको मुग्ध करनेवाले उस सुन्दर संगीतको उद्यानमें स्थित अकेले राजाको दिखलाया ॥६॥ उक्त संगीतको देखकर राजा जैसे ही उसे आदरके साथ अपने सामन्त जनोंको दिखलानेके लिए उद्यत हुआ वैसे ही बन्दर उस संगीतको समाप्त करके दसों दिशाओंमें भाग गये ॥६९॥ तत्पश्चात् मन्त्रीने कहा कि हे सैनिको! राजा निश्चित ही किसी भूतके द्वारा प्रस्त किया गया है । ऐसा कहकर मन्त्रीने राजाको दृढ़तापूर्वक बँधवा दिया ।।७०॥ ____ तत्पश्चात् जब बन्धनबद्ध राजाने भी फिरसे वही कहा कि मैंने मुर्खतावश असत्य कहा है तब मन्त्रीने मनमें सन्तुष्ट होकर हँसते हुए उसे बन्धनमुक्त करा दिया ॥७१॥ तब उसने राजासे कहा कि हे प्रभो ! जिस प्रकार तुमने वनमें बन्दरोंका संगीत देखा है उसी प्रकार मैंने जलके ऊपर तैरती हुई उस शिलाको भी देखा था ॥७२॥ ६९) इमिदमाहृतः; अ क दिशः for दश। ७०) अ मन्त्री निगद्यते, ब क मन्त्री निगदिते; इ तं नृपम् । ७१) क ड इ भाषिते ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy