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________________ १९३ धर्मपरीक्षा-१२ नर्तनप्रक्रमे शंभुस्तापसीक्षोभणोद्यतः । विषेहे दुःसहां दोनो लिङ्गच्छेदनवेदनाम् ॥३१ अहल्ययामराधीशश्छायया यमपावको। कुन्त्या दिवाकरो नीतो लघिमानमखण्डितः ॥३२ इत्थं नैको ऽपि देवो ऽस्ति निर्दोषो लोकसंमतः । परायत्तीकृतो येन हत्वा मकरकेतुना ॥३३. इदानीं श्रूयतां साधो निर्दिष्टं जिनशासने । रासभोयशिरश्छेदप्रक्रम' कथयामि ते ॥३४ ज्येष्ठागर्भभवः शंभुस्तपः कृत्वा सुदुष्करम् । सात्यकेरेङ्गजो जातो विद्यानां परमेश्वरः॥३५ शतानि पञ्च विद्यानां महतीनां प्रपेदिरे । क्षुद्राणां सप्त तं धोरं' सिन्धूनामिव सागरम् ॥३६ ३३) १. मान्यः । २. पराधीनीकृत । ३४) १. क कथानकम् । २. तवाग्रे । ३५) १. मुनेः। ३६) १. शम्भुम् । नृत्यके प्रसंगमें तापसियोंके क्षोभित करनेमें उद्यत होकर बेचारे महादेवने लिंगछेदनको दुःसह वेदनाको सहा ॥३१॥ इसी प्रकार अहल्याके द्वारा इन्द्र, छायाके द्वारा यम व अग्नि तथा कुन्तीके द्वारा सूर्य ये पूर्णतया लघुताको प्राप्त हुए हैं-उनके निमित्तसे उक्त इन्द्र आदिका अधःपतन हुआ है ॥३२॥ ___ इस प्रकार अन्य जनोंके द्वारा माने गये देवोंमें ऐसा एक भी निर्दोष देव नहीं है जिसे कामदेवने नष्ट करके अपने वशमें न किया हो-उपर्युक्त देवोंमें सभी उस कामके वशीभूत रहे हैं ॥३३॥ हे सत्पुरुष ! अब मैं तुम्हें, जैसा कि जिनागममें निर्देश किया गया है, उस गर्दभ सम्बन्धी शिरके छेदनेके प्रसंगको कहता हूँ। उसे सुनो ॥३४॥ ___ ज्येष्ठा आर्यिकाके गर्भसे उत्पन्न हुआ सात्यकि मुनिका पुत्र महादेव (ग्यारहवाँ रुद्र) अतिशय घोर तपको करके विद्याओंका स्वामी हुआ । उस समय उस धैर्यशाली महादेवको पाँच सौ महाविद्याएँ और सात सौ क्षुद्रविद्याएँ इस प्रकारसे प्राप्त हो गयीं जिस प्रकार कि छोटी-बड़ी सैकड़ों नदियाँ समुद्रको प्राप्त हो जाती हैं ॥३५-३६।। ३१) व ननर्त प्रक्रमे । ३२) अ आहल्लया; ब अहिल्लया। ३४) अ ड श्छेदः प्रक्रम, क छेदे । ३५) क इ रुद्रः for शंभुः; अ सुदुश्चरम् । २५
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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