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अमितगतिविरचिता
तदीयं वचनं श्रुत्वा विहस्य भणितं मया । हारितं हारितं कान्ते प्रथमं भाषितं त्वया ॥५२ गुडेन सर्पिषा' मिश्राः प्रतिज्ञाताः स्वयं त्वया । पङ्कजाक्षि दशापूपा दीयतां मम सांप्रतम् ॥५३ इदं पश्यत मूर्खत्वं मदीयं येन हारितम् । सर्वं पूर्वाजितं द्रव्यं दुरापं धर्मशर्मदम् ॥५४ तदा बोडमिति ख्यातं मम नाम जनैः कृतम् । विडम्बनां न कामेति प्राणी मिथ्याभिमानतः ॥ ५५ कर्तव्यावज्ञयो जीवो जीवितव्यं विमुञ्चति । नाभिमानं पुनर्जातु क्रियमाणो ऽपि खण्डशः ॥५६ समस्तद्रव्यविच्छेद सहनं नाद्भूतं सताम् । मिथ्याभिमानिना सर्वाः सह्यन्ते श्वभ्रवेदनाः ॥५७ बोडेन सदृशा मूर्खा ये भवन्ति नराधमाः । न तेषामधिकारो ऽस्ति सारासारविचारणे ॥५८
५३) १. घृतेन ।
५६) १. कृत्याकृत्यअज्ञानता ।
उसके इस वचनको सुनकर मैंने हँसकर कहा कि हे प्रिये ! तू हार गयी, हार गयी; क्योंकि, पहले तू ही बोली है ॥ ५२ ॥
हे कमल-जैसे नेत्रोंवाली ! तूने घी और गुड़से मिश्रित दस पूवोंके देनेकी जो स्वयं प्रतिज्ञा की थी उन्हें अब मेरे लिए दे || ५३ ||
वह तीसरा मूर्ख कहता है कि हे पुरवासियो ! मेरी इस मूर्खताको देखो कि जिसके कारण मैंने पूर्व में कमाये हुए उस सब ही धनको लूट लेने दिया जो दुर्लभ होकर धर्म और सुखको देनेवाला था ॥ ५४ ॥
उस समय लोगोंने भेरा नाम 'बोड' (मूर्ख) प्रसिद्ध कर दिया । ठीक है, प्राणी मिथ्या अभिमान के कारण कौन-से तिरस्कार या उपहासको नहीं प्राप्त होता है - सभी प्रकार के तिरस्कार और उपहासको वह प्राप्त होता है || ५५॥
प्राणी तिरस्कारके कारण प्राणोंका परित्याग कर देता है, परन्तु वह खण्ड-खण्ड किये जानेपर भी अभिमानको नहीं छोड़ता है ||५६ ||
मिथ्या अभिमानी मनुष्य यदि सब धनके विनाशको सह लेता है तो इससे सत्पुरुषोंको कोई आश्चर्य नहीं होता है । कारण कि वह तो उस मिथ्या अभिमानके वशीभूत होकर नरक दुखको भी शीघ्रता से सहता है ॥५७॥
मनोवेग कहता है कि विप्रो ! जो निकृष्ट मनुष्य बोडके सदृश मूर्ख होते हैं वे योग्यायोग्यका विचार करनेके अधिकारी नहीं होते हैं ||५८ ||
५३) ब स्वयापूपाः । ५५) अ बोट, ब वोट्ट, क वोड, डवोद । ५६) व कर्तृणावज्ञया अ विमुंचते; । ५७) ड इ 'भिमानतः; अ इ. सद्यः for सर्वाः । ५८) अबोटेन, ब बोट्टेन, ड बोन |