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________________ धर्मपरीक्षा- ७ यो ददाना सुरभिनिरस्ता' म्लेच्छेन मूढेन मुधा प्रशस्ता । अज्ञानहस्ते पतितं महाघं पलायते रत्नमपार्थमेवें ॥८२ ददाति धेनुव्यवतिष्ठमानं' दुग्धं विधानेन विना न शुद्धम् । चामीकरं ग्रावणिं विद्यमानं न व्यक्तिमायाति हि कर्महीनम् ॥८३ इदं कथं सिध्यति कार्यजातं हानि कथं याति कथं च वृद्धिम् । इत्थं न यो ध्यायति सर्वकालं स दुःखमभ्येति भवद्वये ऽपि ॥८४ यो न विचारं रचयति सारं माननिविष्टो मनसि निकृष्टः । म्लेच्छसमानो व्यपगतमानः स क्षेतकार्यो बुधपरिहार्यः ॥८५ म्लेच्छनरेन्द्रो विपदमसह्यां गां नयति स्म व्यपगतबुद्धिः । दोषमशेषं व्रजति समस्तो मूर्खमुपेतः स्फुटमनिवार्यम् ॥८६ ८२) १. देयमाना । २ क गौः । ३. निःकासिता; क तिरस्कृता । ४. निरर्थकम् । ८३) १. विद्यमानम् । २. क पाषाणे । ८४) १. समूहम् । २. न विचारयति । ३. प्राप्नोति । ८५) १. नष्ट | ११९ मूर्ख म्लेच्छ दूध देनेवाली उत्तम गायको व्वर्थ ही निकलवा दिया । ठीक हैअज्ञानी जनके हाथमें आया हुआ महान् प्रयोजनको सिद्ध करनेवाला रत्न व्यर्थ जाता ॥ ८२ ॥ गाय अपने पासमें स्थित निर्मल दूधको प्रक्रिया (नियम) के बिना नहीं दिया करती । ठीक है - पत्थर में अवस्थित सोना क्रियाके बिना प्रकट अवस्थाको प्राप्त नहीं हुआ करता ॥८३॥ यह कार्यसमूह किस प्रकारसे सिद्ध हो सकता है तथा इसके सिद्ध करने में किस प्रकार से हानि और किस प्रकार से वृद्धि 'सकती है, इस प्रकारका जो विचार नहीं करता है वह दोनों ही लोकों में निरन्तर दुखको प्राप्त होता है || ८४|| जो अम मनुष्य अभिमान में चूर होकर मनमें श्रेष्ठ विचार नहीं करता है वह उस म्लेच्छके समान गर्वसे रहित होता हुआ अपने कार्यको नष्ट करता है। ऐसे मनुष्यका विद्वान् परित्याग किया करते हैं ॥ ८५ ॥ उस बुद्धिहीन ( मूर्ख) म्लेच्छ राजाने गायको असह्य पीड़ा पहुँचायी। ठीक है - जो मूर्ख की संगति करते हैं वे सब प्रकट में उन समस्त दोषोंको प्राप्त होते हैं जिनका किसी भी प्रकार से निवारण नहीं किया जा सकता है ॥ ८६ ॥ ८२) अ ब सुधा for मुधा; अब महार्थं । ८४) ब क ड इ कथं विवृद्धिम् । ८६) बमसह्यामानयति.... मूर्खमपेतः.... मविचार्यम्, इ वार्य: ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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