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________________ धर्मपरीक्षा-६ निर्गत्य वसतेरेस्या गतो तोवुत्तरापथम् । मृगौ विघातकारिण्या वागुरायां इव द्रुतम् ॥४७ शशाम दहनो दग्ध्वा मन्दिरं तच्छनैः शनैः। शुशुचुः सकला लोकाः पश्यन्तो भस्म केवलम् ॥४८ सतीनामग्रणीदग्धा ब्राह्मणी गुणशालिनी। बटुकेन कथं साधं पश्यताहो कृशानुना ॥४२ बाह्याभ्यन्तरयोर्लोका विलोक्यास्थिकदम्बकम् । 'विषण्णीभूतचेतस्का जग्मुगेंहं निजं निजम् ॥५० प्रपञ्चो विद्यते को ऽपि स लोकत्रितये ऽपि नो। कामेन शिक्ष्यमाणाभिर्भामाभिर्यो न बुध्यते ॥५१ लोकेन प्रेषितं लेखं दृष्ट्वागत्य द्विजाग्रणोः । विलोक्य मन्दिरं दग्धं विललाप विमूढधीः ॥५२ ४७) १. क गृहात् । २. क यज्ञायज्ञदत्तौ । ३. क उत्तरदिशायाम् । ४. पाशायाः। ४८) १. अग्निः । ५०) १. विपाद। तत्पश्चात् वे दोनों उस नगरसे निकलकर उत्तरकी ओर इस प्रकारसे चल दिये जिस प्रकार कि हिरण व्याधकी प्राणघातक वागुरा (मृगोंको फंसानेवाली रस्सी ) से छूटकर शीघ्र चल देते हैं ।।४७॥ उधर अग्नि उस घरको धीरे-धीरे जलाकर शान्त हो गयी। लोगोंने वहाँ केवल भस्मको देखा । इस दुर्घटनाको देखकर सब शोक करने लगे ॥४८॥ वे सोचने लगे कि जो यज्ञा ब्राह्मणी सतियोंमें श्रेष्ठ और गुणोंसे विभूषित थी, आश्चर्य है कि बटुकके साथ उसको अग्निने देखते-देखते कैसे जला डाला ॥४९॥ वे लोग घरके बाह्य और अभ्यन्तर भागमें हड़ियोंके समूह को देखकर मनमें बहुत खिन्न हुए । अन्तमें वे सब अपने-अपने घरको चले गये ॥५०॥ ___ तीनों लोकोंमें ऐसा कोई प्रपंच (धूर्तता ) नहीं है जिसे कामके द्वारा शिक्षित की जानेवाली स्त्रियाँ न जानती हों। अभिप्राय यह कि स्त्रियाँ कामके वशीभूत होकर अनेक प्रकारके षड्यन्त्रोंको स्वयं रचा करती हैं ॥५१॥ इधर नगरवासी जनोंने ब्राह्मणके पास जो उसके घरके जलनेका समाचार भेजा था उसे देखकर वह ब्राह्मणोंमें श्रेष्ठ मूर्ख भूतमति वहाँ आया और अपने जले हुए घरको देखकर विलाप करने लगा॥५२॥ ४७) ब निर्गत्यावसरे तस्या गतौ; इवुत्तरां दिशम् । ४८) अ पश्यतो। ५१) म सकलो त्रितये, बस कालत्रितये; अ ब क शिष्यमाणाभिः; अ योषिताभिर्यो न । ५२) ब दृष्ट्वागच्छन् । .
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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