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________________ । धर्मपरीक्षा-६ सकलं कुरुते दोषं कामिनी परसंगिनी। वज्राशुशुक्षणिज्वाला कं तापं वितनोति नो ॥१३ यः करोति गृहे नारी स्वतन्त्रामनियन्त्रिताम् । न विध्यापयते सस्ये दीप्तामग्निशिखामसौ ॥१४ व्याधिवृद्धिरिवाभीक्ष्णं' गच्छन्ती परमोदयम् । उपेक्षिता सती कान्ता प्राणानां तनुते क्षयम् ॥१५ यतो जोषयते' क्षिप्रं विश्वं योषा ततो मता। यतो रमयते पापे रमणी भणिता ततः ॥१६ यतो मारयते पृथ्वी कुमारी गदिता ततः। विदधाति यतः क्रोघं भामिनी भण्यते ततः॥१७ १३) १. अग्नि। १४) १. स्वाधीनाम् । २. अरक्षिताम्; क ( अ ) निर्गलाम् । ३. क न शमयते । १५) १. पुनः पुनः। २. अवगणिता। १६) १. क प्रतीयते। दूसरेसे संगत स्त्री समस्त दोषको करती है। ठीक है-वज्राग्निकी ज्वाला भला किसको सन्तप्त नहीं करती है ? अर्थात् वह सभीको अतिशय सन्ताप देती है ॥१३॥ जो मनुष्य घरमें स्त्री को अंकुशसे रहित स्वतन्त्र करता है-उसे इच्छानुसार प्रवर्तने देता है-वह धान्य (फसल) में भड़की हुई अग्निकी ज्वालाको नहीं बुझाता है। अभिप्राय यह कि जिस प्रकार फसलके भीतर लगी हुई अग्निको यदि बुझाया नहीं जाता है तो वह समस्त ही गेहूँ आदिकी फसलको नष्ट कर देती है, उसी प्रकार स्त्रीको स्वच्छन्द आचरण करते हुए देखकर जो पुरुष उसपर अंकुश नहीं लगाता है- उसे इच्छानुसार प्रवर्तने देता है-उसका उत्तम कुल आदि सब कुछ नष्ट हो जाता है ॥१४॥ जिस प्रकार निरन्तर अतिशय वृद्धिको प्राप्त होनेवाले रोगकी वृद्धिकी यदि उपेक्षा की जाती है तो वह अन्तमें प्राणोंके विघातको करता है उसी प्रकार निरन्तर स्वेच्छाचारितामें वृद्धि करनेवाली स्त्रीकी भी यदि उपेक्षा की जाती है तो वह भी अन्तमें प्राणोंका विघात करती है ॥१५॥ ___ स्त्री चूंकि समस्त विश्वको शीघ्र ही नष्ट किया करती है, अतएव वह 'योषा' मानी गयी है । तथा वह चूंकि विश्वको पापमें रमाती है, अतएव वह 'रमणी' कही जाती है ॥१६॥ वह पृथिवी (कु) को मारनेके कारण 'कुमारी' तथा क्रोध करनेके कारण भामिनी' (भामते इति भामिनी-कोपना) कही जाती है ॥१७॥ १४) ब विध्यापयति सस्ये हि। १५) इ गच्छती। १६) अ योषते, ब यूषयति, इ जोषयति; ब क मता ततः; The arrangement of verses No. 16 to 18 in इ यतो जोषयति....भण्यते ततः ॥१६॥ यतश्छादयते....विलया ततः ॥१७।। यतो रमयते....कुमारी भणिता ततः ॥१८॥।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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