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________________ धर्मपरीक्षा - ५ अप्रशस्तं विरक्तस्य प्रशस्तमपि जायते । प्रशस्तं रागिणः सर्वमप्रशस्तमपि स्फुटम् ॥४७ तन्नास्ति भुवने किंचित् स्त्रीवशा यन्न कुर्वते । अमेध्यमपि वल्भन्ते' गोमयं पावनं न किम् ॥४८ गोमयं केवलं भुक्त्वा शालायां संनिविष्टवान् । ग्रामकटो द्विजं प्रष्टुं प्रवृत्तः प्रेयसीक्रुधम् ' ॥४९ कि प्रेयसी मम क्रुद्धा कि किंचिद्भणिता त्वया । ममाथ दुर्नयः कश्चित् कथ्यतां भद्र निश्चयम् ॥५० सोsवादीद् भद्र तावत्ते तिष्ठतु प्रेयसीस्थितिः । श्रूयतां चेष्टितं स्त्रीणां सामान्येन निवेद्यते ॥५१ न सोऽस्ति विष्टपे दोषो विद्यते यो न योषिताम् । कुतस्तनो ऽन्धकारो ऽसौ शर्वर्यां यो न जायते ॥५२ ४८) १. भोक्ष्यन्ते । ४९) १. क कुरङ्गीं । ५२) १. क संसारे । २. रात्रौ । ७९ ठीक है – विरक्त मनुष्यके लिए प्रशंसनीय वस्तु भी निन्दनीय प्रतीत होती है, किन्तु इसके विपरीत रागी मनुष्यके लिए स्पष्टतया घृणित भी सब कुछ उत्तम प्रतीत होता है ॥४७॥ लोकमें वह कुछ भी नहीं है जिसे कि स्त्रीके वशीभूत हुए मनुष्य न करते हों। जब वे घृणित गोबरको भी खा जाते हैं तब पवित्र वस्तु का क्या कहना है ? उसे तो खाते ही हैं ॥४८॥ वह बहुधान्यक एकमात्र उस गोबरको खाकर ब्राह्मणसे अपनी प्रियतमा ( कुरंगी ) के क्रोध के कारणको पूछने के लिए उद्यत होता हुआ सभा भवनमें बैठ गया ॥ ४९ ॥ उसने ब्राह्मणसे पूछा कि हे भद्र ! क्या तुम कुछ कह सकते हो कि मेरी प्रिया कुरंगी मेरे ऊपर क्यों रुष्ट हो गयी है ? अथवा यदि मेरा ही कुछ दुर्व्यवहार हुआ हो तो निश्चयसे वह मुझे बतलाओ ||५०॥ इसपर ब्राह्मण बोला कि हे भद्र ! तुम अपनी प्रियाकी स्थितिको अभी रहने दो। मैं पहले सामान्य से स्त्रियोंकी प्रवृत्तिके विषय में कुछ निवेदन करता हूँ, उसे सुनो ॥ ५१ ॥ लोकमें वह कोई दोष नहीं है जो कि स्त्रियोंमें विद्यमान न हो । ठीक है - वह कहाँका 1. अन्धकार है जो रात्रिमें नहीं होता है । अर्थात् जिस प्रकार रात्रिमें स्वभावसे अन्धकार हुआ करता है उसी प्रकार स्त्रियों में दोष भी स्वभावसे रहा करते हैं || ५२ ॥ : ४८) इ वल्भ्यन्ते । ४९) इ भुङ्क्त्वा ब प्रदत्तः; क ड प्रेयसीं प्रति । ५० ) अ प्रेयसी....क्रुद्धां; क भणितं, इ किंचिज्ज्ञायते ; ब ममाप्य; इ निश्चितम् । ५१ ) अ ' स्थितः.... न विद्यते ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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