________________
मैं मूर्ति की ओर पीठ करके भी नहीं बैठता । लाखों लोगो की दृष्टि में जो पूज्य है उनका अनादर और अवहेलना करना हमारा काम नहीं।
(16-8-1967 के प्रवचन से - ध. क्रां. सु.) ऐतिहासिक दृष्टि से भी मूर्तियों में जो स्थापत्य कला है वह जैनों के लिए गौरव का विषय है ।
( धम्मो सरण पृ 83-84 । ध. क्रां. सु. )