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वस्त्रपूजा.. नमोऽर्हत्०.. (२।। - सरस शांति सुधारस)
सकललोक सुसेवित पंकजा, वरयशोजित शारद कौमुदी...। निखिल कल्मष नाशन तत्परा..., जयतु सा जगतां जननी सदा.. ।। १ ।। कमल गर्भ विराजित भूवना, मणि कीरीट सुशोभित मस्तका...। कनक कुंडल भूषित कर्णिका, जयतु सा जगतां जननी सदा... ||२|| वसु हरिद् गजसंस्नपितेश्वरी, विघृत सोमकला जगदीश्वरी.. I
जलज-पत्र समान विलोचना, जयतु सा जगतां जननी सदा... ||३ ।। शारदा शारदांभोज, वदना वदनांबुजे ! सर्वदा सर्वदास्माकं, सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ।। ॐ ह्रीँ श्री भगवत्यै केवलज्ञानस्वरूपायै लोकालोकप्रकाशिकायै श्री सरस्वत्यै वस्त्रं यजामहे स्वाहा ।
आभरण पूजा नमोऽर्हत्०.. (२|| - सरते शांति सुधारस) कांचीसूत्र विनूत सार निचितैः केयूर सत्कुन्डलै : मंजीरागद-मुद्रिकादि मुकुट,प्रालम्बिका वासकै :
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