SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [भगवती- मूलं एवं वृत्ति:] इस प्रकाशन की विकास-गाथा पूज्य श्री लक्ष्मीसागरसूरिजी के शिष्य श्री जिनमाणिक्यगणिजी के शिष्य अनंतहंसजी के शिष्य श्री दानशेखरसूरिजी रचित वृत्ति की प्रत सबसे पहले "श्री भगवतीसूत्र के नामसे सन १९ ३५ (विक्रम संवत १९९२) में रुषभदेव केशरीमल संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादकमहोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | पूज्यपाद श्री अभयदेवसूरिजीने भी भगवतीजी सूत्र पर एक विशाल वृत्ति की रचना कि है, जो हमारी "आगम सुत्ताणि सटीकं' एवं “सवृत्तिक आगम सूत्राणि" मे मुद्रित हुइ है | * हमारा ये प्रयास क्यों? + आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूज्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर शतक-वर्ग-उद्देशक-मूलसूत्र- आदि के नंबर लिख दिए, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा शतक, उद्देशक आदि चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके | हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढते हए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सत्रों के नंबर अलगअलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस H दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची है। समय हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक शतक, वर्ग एवं उद्देशक लिख दिये है, साथमें इस सम्पादन के पष्ठांक भी दिए है. जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते शतक या विषय तक आसानी से पहुँच शकता है । अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जिसमे उस पृष्ठ पर चल रहे खास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है । अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसि को मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ..मुनि दीपरत्नसागर.....
SR No.006212
Book TitleAagam 05 Bhagavati Daanshekhariyaa Vrutti Ang Sutra 5 Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages305
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size87 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy