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________________ आगम (४५) "अनुयोगद्वार"- चूलिकासूत्र-२ (चूर्णि:) ................मूलं ७-११] / गाथा ||१|| ........ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४५], चूलिकासूत्र- [०२] "अनुयोगद्वार" चूर्णि: श्री प्रत सूत्रांक [७-११] गाथा ||१|| चाँ ESisit ॥६ ॥ कहणे पुण ग सो लद्धो कमो घोसेतब्बो, जतो गाणपंचके वक्खाते भणितं ' एवं पुण अहिगारो' गाहा, तत्थवि अहिकारो आवश्यका अषुयोगण, तस्स य इमे दारा भणिता-णिक्षेवेगढ़ णित्ति विहि पविसीय केण वा कस्सी । तदार भेद लक्खण तदरिहपरिसा :धिकारः शय सुचत्थे ॥ १॥ तीए से पक्वार्ण जचा कप्पपेढे, एत्थ य कस्सति दारं, तत्थ बत्तव्य आवस्सगस्स, ते आव०कि अंग कि अंगाईति इच्चादि, एवं अद्दपुच्छासंभवो, न दोष इत्यर्थः । खधो नियमाजायणा अक्षयणावि च ण खंधवारिता । तम्हा न दोचि गेजमा अण्णतरं गण्ड चोदताशा आ०-खंघाति सुत्तणाम तस्स य अत्थस्स भेदा अजायणा फुडभिण्णत्था, एवं दोण्डा। महो मण्यति, वा परिः'आवस्सगं णिविश्वविस्सामी' त्यादि सुतं (७-१०) जाव' आवस्सगंति णाम कोई कस्सति | जहिच्छता कुणते । दीसह लोए कस्सइ जह सीहगदेवदत्तादी॥१॥ अज्जीबेसुषि केसुवि आवास भणति एगदव्वं तु । जह | अच्चिनदुममिण भणंति सप्पस्स आवासं ॥ २॥ जीवाण बहूण जधा भणति अगणिति मसआवासं । अज्जीवाविहु बहवो जह आवास तु सउणिस्स ॥२॥ उभयं जीवाजीवा तष्णिप्फर्ण भणंति आवासं । जह राणावास देवावासं विमाणं वा ॥४॥ समुदाणुभयाणं कप्पावासं भणति इंदस्स । नगरनिवासावास गामावासं च भिच्चादि ॥ ५ ॥ (इतोऽग्रे पतितः पाठः कियान्)। गोलसालिया मुहमंडणं वा कीरइ, एते कीर अधिरतणओ ण गेज्झा, इमे गेझा-संखदण्णे तुवढादिघड़िता वराडया चेय गेज्मा, एतेसु एगाणेगेसु इच्छितागारणिब्वचणा सम्भावठवणा, जा पुण इच्छिताकारबिसुहा अणागिती सा असम्भावठवणा इति, 'णामठवणाणं को पतिविसेसो' इत्यादि (११-१३ ) सत्र, 'भावरहितमि दवे णाम ठवणा त दोवि अविसिट्ठा । इतरेतरं पडुल्चा किह उ बिसेसो भवे तासिं? ||१| कालकतो स्थ विसेसो णाम तो धरति जाव दीप अनुक्रम [७-१२] SESSACASS ~10~
SR No.006208
Book TitleAagam 45 Anugdwaar Sutra Choorni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages97
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size8 MB
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