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आगम
“दशवैकालिक - मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) (४२) | चूलिका [१], उद्देशक [-], मूलं [१/५०६-५२४] / गाथा: [४८२-४९९/५०६-५२४], नियुक्ति: [३६१-३६९/३५९-३६७], भाज्यं [६२...]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] “दशवैकालिक" नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि:
प्रत
सूत्राक
चूर्णा र
गाथा
॥४८२
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४९९||
श्रीदश- परिआए' जदीति अतिक्रान्तां क्रियामाकांक्षति, अहमिति अप्पाणमेव णिदिसति, रमंतो इति रई विदंतो, परियायो णामा रवारतवैकालिक पष्वज्जा, बहुत्तमितिकाउं सा विसोसिज्जति 'सामण्णे', सोय समणभावो तत्थ विसेसो जिणदेसिए, न बोडियनिहगाइसच्छ
दगहणं । ओहाणुप्पेहिस्सेव मतीथिरीकरणस्थमिदमुच्यते-'देवलोगसमाणो०(अ.)॥४९॥ सिलोगो, देवाणं लोगो देवलोयो, रतिवाक्ये
देवलोगेण समाणो देवलोगसमाणो, समाणो तुलो, जहा तंमि देवलोगे देवा रतिसागरोगाढा गतंपि कालं न याणति, विविहाणि
य माणसाणि दुक्खाणि ण संभवति, तहा पव्यज्जाए विधिइ अप्पमओ तेण देवलोगसमाणो, तुसद्दी विसेसयति, किं विसेसेति ? ॥३६॥
अरतीतो रति, परियागरइयाण, तबिवरीयरताण य, तुसहो तहेव रतीओ अरई विससयति, निदरिसणं मणुस्सो, दुक्खाणुगमेण 'महानरयसारिसों' महानिरओ जो सम्भावनिरओ तउ मणुस्सदुक्खो उपयारमतं, अहवा सत्तमादिमहानिरमो, तेण सरिसो-स| माणो दुक्खो जस्स सो महानिरयसारिसो, एवं अरयस्स सामण्णपरियाए, सामष्णे रयाणं च सुहृदखसहाणोपमाणं भणिय अरयाण, एयस्स चेव अत्थस्स उपसंहरणोषदेसो समुण्णीयते -'अमरोवमं जाणिअ०॥४९॥सिलोगो, मरणं मारो न जेसि मारो अस्थि ते अमरा, अमराणं सोक्खं अमरसाक्खअमरसोक्खेण उवमा जस्स तं अमरसोक्खोवम, उत्तरपदलोपे को अमरावम, 'जाणिय'
जाणिऊण, सोक्खस्स भावो सोक्वं 'उत्तम' उकिडे, देवलोगसरिसं सोक्खं भवइ रताण परियाए, एवं जाणिऊण अति च विवप्रोजेऊण परियाए रमियब्वति, तदा 'अरयाण' ति उत्तरपदेण संबज्झा. तं पुण दम "णिरयोचर्म जाणिअ बुक्खमुत्तमा तहात
| तेणाप्पगारण जहा रयाण सुरसुक्खसरिस, वह अरमाणं नरगदोसोवमं दुक्ख पुनम जाणिऊण रमेज्ज-सामने चिति उपाएज्जा, I'तम्हा' इति हउवयण, रयारयाणं सुदुक्खपरिणाणहेऊ, एतेण कारणेण परियार रमिज्ज, एवं पंडिओ भवद एवं परियाय
SHRSNEHRADESH
दीप अनुक्रम [५०६५२४]
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AKCE
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