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आगम (४२)
“दशवैकालिक - मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [७], उद्देशक [-], मूलं [१५...] / गाथा: [२७८-३३४/२९४-३५०], नियुक्ति: [२७१-२९३/२६९-२९२], भाष्यं [६२...]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] “दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि:
प्रत
सूत्रांक [१५...]
गाथा ||२७८
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चूणों
॥२४॥
३३४||
| अण्णत्ते जहा सुद्धवंसो सो देवदत्तो, अणणचे जहा सुद्धदेतो, आदेसब्बसुद्धी गता। वण्णरसगंधफासे ॥२८७|| माथा, वाक्य: । पहाणदब्बसद्धी इमेसु ठाणेसु भवइ, तं०-वष्णेसु गंधेस रसेस फासेसु जा समणुनया सा पहाणवकसुद्धी भवति, समणुना नाम | दरिसणिजत्ता, तस्थ बन्नेसु सुकिल्लो बनो पहाणो गंधेसु सुरभी पहाणो रसेसु महुरो पहाणो फासेसु मउयलहुयउण्हणिद्धा पहाणा, अहवा वारसंगधफासेसु जो जस्स संमतो सो तस्स पहाणो, संमओ नाम अभिप्रेतो, पहाणसुद्धी गता, गया य दब्व
निक्षेपाः सुद्धी । इयाणि भावसुद्धी भण्णइ, तंजहा- 'एमेव भावसुद्धी ॥२८॥ गाथाषुब्बद्धं, 'एवमेव' ति जहा दव्यसुद्धी। तिविधा दग्बादि एवं आवसुद्धीवि तिविधा, तं०-सम्भावसुद्धी आदेसभावसुद्धी पहाणभावसुद्धी य, तत्थ तब्भावसुद्धी आदेस-13 भावसुद्धी य इमेण माथापच्छद्रेण भण्णंति, तजहा-तम्भावगमाएसो अणण्णमीसा हवइ सुद्धी० ॥ २८८ ॥ गाथापच्छर्दू, तस्य तब्भावसुद्धी जहा तमि गतो भावे सो अहिकंखर, जहा बुभुक्खिओ अनंतिसिओ पाणं एवमादि । इदाणिं आदेसभावसुद्धी, सा दुविधा, तंजहा-अण्णाचे अणण्णत्ते य, तत्थ अण्णचे जहा सुद्धभावस्स साहुस्स एस आयरिओ, अणण्णत्ते जो जेण भावेण आदिस्समाणो न विरुज्झइ, जहा सुद्धसभावो साहू । इयाणि पहाणभावसुद्धी भण्णइ, तंजहा- 'दसणनाणचरित्ते ।। २८९ ।। गाथा, पहाणभावसुद्धी जं दसणादीण आदिस्समाणाणं सा पहाणभावसुद्धी भण्णइ, तत्थ दसणपहाणसुद्धी खाइन्। दसणं, नाणपहाणसुद्धी खाइगं गाणं, चरित्तपहाणसुद्धी य अहक्खायं चरितं, तवपहाणसुद्धी य अम्भितरतवस्स सम्ममाराहणाए,I||२४१॥ तेहिं दसणाईहिं परिसुद्धेहिं जम्हा साहू विसुद्धकम्ममलो भवद अओ अविसुद्धो सुद्धो भवइत्ति , एत्थ भावविसुद्धीय अधिकारो, | सेसा उच्चारितसरिसत्तिकाऊण परूविया, मुद्धी गया । सीसो आह- बकसुद्धीए कि पओयणति !, आयरिओ भणइ- सुद्धेण
दीप अनुक्रम [२९४३५०]
ARAK
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