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________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 प्रत सूत्रांक ध्ययने + गाथा: ||१२|| प्रतिक्रमणासो चित्तेति,तातियो मम पिता,तेण चित्तसभ चित्तेंतेणं पुवाविढचपि बहुं निढवित, संपति जो वा सो वा आहारो, सोय सीतलो निन्दायां रिसो होहिति ? तो आणिते सरीरचिताए जाति, चउत्थो तुम, कई ?, सब्बोवि ताव चितति-कतो एत्थ मोरपिच्छं , जदिविचित्रकर आणितेल्लग होज्जा तोचि ताव दिडीए मुठ्ठ निझाइज्जति, सो मणति- सच्चगं मुक्खा, राया गतो, पिता से जिीमतो, सावि दारिका ॥५८॥ सघरं गता,रायाए बरगा पेसिता, तीए मातापितं भणितं-दोहीति, भष्णइ य- अम्हे दरिदाणि, किह रण्णा सपरिजणस्स पूर्व काहामो ?, ताहे दव्यं से रण्णा दिया, तेहिवि दिष्णा । दासी अणाए सिक्खाविता-मम रायाणगं च संबाधंती अक्खाणगं पुच्छे-1 ज्जासित्ति, जाहे राया सोतुकामो ताहे दासी भणति-सामिीण ! राया पबद्दति, किंचि अक्खाणग कहहि । भणति- कहेमि, एगस्स धूता अलंयणिज्जाणं तिण्हं वरगाणं मातिभातिपितीहि दिण्णा जाव निब्बहणाणि आगताणि,सा रति अहिणा खहता मता, एगो | तीए समं चितं विलग्गो, एगो अणसणं पयट्ठो, एगैण देवो आराधितो, तेण से संजीवणो मंतो दिनो, उज्जीविता चिता, |तिण्णिवि उवहिता, कस्स दातव्या , किं सक्का- एक्का दोण्हं तिण्हं वा दातुं, तो अक्खाहत्ति, भणति-निदाइयामित्ति सुवामि, कल्लं कहेहामि, तस्स अक्खाणगस्स कोतुहल्लेणं वितियपि दिवसं तसिवि वारओ आणचो, ताहे सा पुणो पुच्छिता भणति-जेण ला उज्जिताविता सो से पिता, जेण समं उज्जीविया सो से पितो भाया, जो अणसणगं पविट्ठो तस्स दातव्वति ।। अणं कहेहि, सा भाभणति एगस्स राहणो सुवण्णगारा भूमिघरे मणिरयणकउज्जोता अणिगच्छन्ता, अंतउरस्स आभरणगाण घडाविज्जति, एगो भिणति- का पुण बेला बट्टति', एगो भणति-रची वट्टति, सो कह जाणति जो ण चंदंण एरं पेच्छति', सा भणति-निदाइया। ॥५८ वितियदिणे कहेति- सो रति अधओ तेण जाणति, अणं अक्वाहित्ति । भणति- एगो राया, तस्स दुवे चोरा उपढविता, तेण से | दीप अनुक्रम [११-३६] ऊऊऊऊRE ANAL (64)
SR No.006204
Book TitleAagam 40 Aavashyak Choorni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages332
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size26 MB
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