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आगम
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"आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति: [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2
प्रत
प्रत्या- ख्यान चूर्णिः
मत्राक
॥२९९॥
सूत्र संविभागो, तत्थ सामातिय नाम सावज्जजोगपरिवज्जणं णिरवज्जोगपरिसेवणं च, तं सावएण कह कायम्बं १, सो दुविहो- शिक्षाव्रतेषु इडिंपत्तो अवधि पत्तो य, जो सो अणिाविपत्तो सो चेत्यपरे वा साधुसमीवे वा घरे वा पोसहसालाए वा जत्थ वा बीसमतितामा
सामायिक अच्छति वा णिव्यावारो सम्बत्थ करोति सव्वं, चउसु ठाणेसु णियमा कायचं, तंजहा-चतियघरे साहुमूले पोसहसालाए वा घरेलू वा आवासं करेंतोत्ति, तत्य जदि साहुसगासे करेति तत्थ का विही?, जदि पारंपरभयं पत्थि जइवि य केणइ समं विवादो णथि जदि कस्सति ण धरेति मा तेण अंछवियंछियं कटिज्जति, जदि धारणगं दट्टण ण गिण्हति मा पडिभज्जिहि, जति य वाचारं ण वावारेति ताहे घरे चेत्र सामातियं काऊण उवाहणातो मोतूर्ण सचित्तदबविरहितो बच्चति, पंचसमिओ तिगुत्तो इरियाए उपउत्तो जहा साहू भासाए सावजं परिहरंतो एसणाए कहूँ लेडु वा पडिलेहित्तु पमज्जित्तु एवं आदाणणिक्वेवणे खेलसिंघाणे ण विगिचति, विगिचिन्तो वा पडिले हिय पमज्जिय चंडिले, जत्थ चिट्ठति तत्थ गुत्तिणिरोध करेति,एताए विहीए गंता तिषि| हेण णमिऊण साधुणो पच्छा साधुसक्खियं सामातिय करेति- करेमि भंते ! सामाइयं दुविहं तिविहेणं जाब साहू पज्जुवासामित्ति | काऊणे, जइ चतियाई अस्थि तो पढमं वंदति, साहूर्ण सगासातो रयहरणं निसज्ज वा मग्गति, अह परे तो से ओग्गाहितं स्यहरणं ४ अस्थि, तस्स असति पोत्तस्स अंतणं, पच्छा इरियावाहियाए पडिक्कमइ, पच्छा आलोइत्ता बंदइ आयरियादी जहारायणियाए, ला पुणोवि गुरुं वंदित्ता पडिलेहेता णिविट्ठो पुच्छइ पढइ वा, एवं चेइएसुवि, असइ साहूचेइयाणं पोसहसालाए सगिहे वा, एवं ॥२९९।।
सामाइयं वा आवस्सयं वा करेइ, तत्थ नवरि गमणं नस्थि, भणइ-जाव णियम समाणेमि । जो हड्डिपत्तो सो किर एंतो सच्चिडीए एइ तो जणस्स अत्था होति, आढिता य साहुणो सप्पुरिसपरिग्गहेणं, जति सो कयसामातितो एति ताए आसहत्यिमादि
दीप अनुक्रम [६३-१२]
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