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आगम (४०)
"आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा दुरायं वा वथए, णो से कप्पति एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वत्थए, जइ तत्थ एगरायातो वा परं वसति से संतरा छेदे वा भिक्षुध्ययने परिहारे वा, तस्स णं कप्पति चत्वारि भासाओ भासित्तए, तंजथा- जातणी पुच्छणी पण्णवणी सुद्धस्स वागरणी, तस्स णं कप्पति
प्रतिमा ॥१२॥
तओ उवरसगा अणुण्णवेत्तए, तंजथा- अधे आगमणगिर्हसि वा अहे पियडगिहंसि वा रुक्खमूलगिहसि वा, तस्स णं कप्पति | तओ उवस्सगाओवाणियचए, तं चैव, तस्स णं कप्पति तओ संथारगा पाडिलेहित्तए, त०- पुढविसिल वा कट्ठसिलं चा अथासंहाथडमेव, तस्सणं कप्पति से पुचि पडिलेहित्तए, तओ संथारगा अणुण्णवेत्तए तं चेब, तस्स णं कप्पति तओ संथारगा उवायाण
चए, तं चेव, मासियं० इत्थी उबस्सय उवागच्छिज्जा सइत्थीए वा पुरिसे णो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पविसिचए वा से उच्चारपासवणणं ओबाहिज्जमाणे कप्पति उग्गेण्हितए वा पगिण्हतए वा, कप्पति से पुब्बपडिलेहिते घडिल्ले उच्चारपासवर्ण
परिट्ठवेत्तए, तमेव उवस्सयं आगम आहाविहमेव ठाणं. ठाइत्तए, मासिय० केइ उबस्सय अगणिकाएणं झामेज्जा नो से कप्पति तं कापडुच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए था, तत्थ णं केइ बाहाए गहाय आगसेज्जा णो से कप्पति अवलंबित्तए वा पच्चवलंबित्तए वा, लकप्पह से आहारिय रिहत्तए, मासिय० पायंसि खाणु वा कंटए वा हीरे वा सकरा वा अणुपविसज्जा णो से कप्पति निहरित्तए।
वा विसोहित्तए वा, कप्पति से आधारिय रीइत्तए, मासियं० अञ्छिसि पाणाणि वा बीयाणि वा रए वा परियावज्जेज नो से कप्पति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा कप्पति से आहारीयं रियित्तए, मासिय जत्थ मूरिए अस्थमज्जा तं०-जलांस वा थलांसा वा दुग्गसि वा निबंसि वा पब्वयंसि वा विसमंसि वा तत्थेव सा रयणी उवादिणावेता सिया, नो से कप्पति पदमाव गमित्तए, | कप्पति से कल्लं पादुप्पभाते जाव जलंते पाइणाभिमुहस्स वा पदीणाभिमुहस्स वा दाहिणाभिमुहस्स वा उत्तराभिमुहस्स वा
दीप अनुक्रम [११-३६]
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॥१२४॥
HEATE
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