SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [२], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१७२-१८६], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ६२-७१] श्रीआचा प्रत वृत्यक [६२७१] रोगपरित्ताणाए तेण एतेण पसत्यमूलगुणड्डाणे ठाइत्ता से ण हस्साए ण रईए ण विभूसाए य अभुद्धिज, ववगयहासकोऊडल्लो चित्तसरीरो इच्चेवं समुट्टितो मूलगुणेहिं पुत्वभणितेहिं संचिजइ, ण केवलं मूलगुणेहिं परिणायकम्मो जो ण इसति, उत्तरगुण-16 चूर्णिः २ अध्या TA उवघातविरहितोस मुणी परिण्णायकम्मोति अमिसमिच्चा सोचावा तिविहकरणसारबजोगविरहितो इचेवं समुट्टिते अहो विहाराए, Wअहो दहण्णे विम्हए य, बिम्हये द्रष्टव्यः अहोसद्दो, विहारो दवे भावे य, दन्बविहरणं लोहमयं जेण उडिमाईणि दवाई ॥ ५४॥ फालिअंति, भावविहरणं पसस्थगुणमूलडाणं जेण अडचिहकम्मखंधा विप्पदालि अंति, 'अंतरं था खलु'ति अंतर विरहो छिई, जहा कोइ सधणो पुरिसो पंथं वच्चंतो चोरेहिं चारियं अप्पाणं जाणित्ता तेसि सुत्तमत्तपमत्ताणं अंतर लधुं हिस्सरति, इहरहा तेसि मुहे पडइ, एवं माणुसस्स खेत्तकालाईणि लधु अहवा नाणावरणीअंतरं लधु जइ ण पचमति तो पुणरबि संसारे पडइ, V खलु विसेमणे, किं विसेसेइ १, मणुस्सेसु तं अंतरं भवति, ण अण्णस्थ, 'इमति तवसंजमवर्स सपेहाए धी-बुद्धी पेहा मतीति, मुहते-मुहुत्तमवि णो पमायए, किमु चिरं कालं?, अंतोमुहुतिओ उवओगो, तेण समतो, इहरहा समयमवि ण पमातए, सो Dतहा अतीव अतीति अञ्चेति, जं भणित-वोलेति, सम्बयाणं जोवणं पियं तपि वोलेति, भणिय च-"नइवेगसमं चंचलं च जीवितं । च" ग्रहणं जहा जोव्वणं तहा बालातियावि, एवं णाऊणं अहो विहारेणं उडिओ पुणरवि अप्पसत्थं गुणडाणं जं उबयंति अतिNIकमंति, ण बुझं 'इह पमत्ता' इपिनि अप्पसस्थगुणमूलट्ठाणे बिसयकसाएसु अहो य राओ य परितप्पमाणा कालाकाल. 'से हंता' से इति सो अप्पसस्थगुणमूलट्ठाणी हंता थावरे जंगमे, छेना हत्थपायाइ, अवराहे अणवराहे वा, रुक्खाति वा, भेत्ता | | सिरउदराति फलाणि वा, लुपिना कसादिहि मारणे पहारे य, लुंपणासदो पहारे बद्दति, विलोपो गामातिपातो उदवणं तासो या, ID५४॥ दीप अनुक्रम [६३७२] ONGSINDIAN मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [58]
SR No.006201
Book TitleAagam 01 ACHAR Choorni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy