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आगम
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [६], उद्देशक [५], नियुक्ति: [२५२...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १९४-१९६]
कामविषण्णादि
प्रत
वृत्यक
[१९४१९६]
श्रीआचा- संगिणो, गंथे पढिता णरा कतरे, ते जेहिं गणियगादि पंचवि धुया, अप्पाणं वा पंच गाहितो, तेहि य अचिहिते हिते रागद्रोसारांग सूत्र
दिएहिं गढिवा बद्धा नरा विसन्ना कामविप्पिता विविहं सन्ना विसण्णा, दव्वे पंकादिविसण्णा भारवाहपरिया चा, भावसन्ना चूर्णि ॥२४२॥
| नियगा पंच, एयाए दुविहाए कामविप्पिता, विग्पितनि विप्पितत्ति वा एगट्ठा, दब्वे खंभादिविप्पिता दुरुद्वरा भवंति, भावे दुविहकामासनचित्ता, सयणधणादिणा मुच्छिता वा कामा, जेहिं वा सारीरमाणसेहिं वा दुक्खादी, माणसेहिं इह विप्पिता परलोएविपरहि | डंडणेहि य जाब पियविष्पोगेहि य विपिस्सिंति, जंसि इमे लूसिणो णो परिवित्तसंति जंसि जत्थ, इमे इति जे वुत्ता | गंथेहिं गढिता नरा, अहवा इमे मिच्छादिट्ठी असंजतमणुस्सा, लूसंतीति लूसगा, पंचगस्स वा लूसगा भंजगा विहारगा एगट्ठा,
| जो परिवित्तसंति-णो उब्वियंति, णो वीभेति, लूपगत्ता ण परिविचसंति, तदुवचियस्स वा कम्मस्स नरमादिभयस्स वा, तहा ANIगंधाओ कामेहितो, पढिजह य-तम्हा लूहाओणो परिवित्तसिजा जम्हा गंथेहिं गहिता णरा विसना इह परत्य य दुक्खेहि
|च विपिजंति तम्हा तुम लूहातो णो परिवित्तसिज, दब्वे जं नेदविरहितं दध्वं तं लूई, भावे रागादिरहितो धम्मो, तत्थ रुक्खत्ता |ण कसादि वज्झति, भावरुक्रवत्थं दबक्खाओ ण चिचसे, भणियं च-अतिणिद्वेण चलि तिकतोसो लहाओ ण परिवित्त| सेत्ति,णणु जस्सिमे आरंभा सबओसुपरिणाता भवंति, जस्सेति जस्स साहुस्स, कतरे आरंभाः पुढविकाइआरंभा आउका
इयारंभातेउकाइयारंभा वाउकाइयारंभा वणस्सकाइयारंभा जाव तसकाइयारंभा, जह सत्थपरिणाए एकेकस्स बहवे आरंभा भणिता | तंजहा उपभोगे य सस्थे य, अहवा णामादिआरंभा, णामठवणाओ गयाओ, दब्वे कायारंभो, भावे 'रागादीया तिपिण'गाहा, | सबतो इति सिचं गहियं, गामे वा जाव सब्बलोए, सन्नता इति सब अप्पत्तेण, भावे गहिते कालोवि तत्थेव, जाणणापरिणाए
दीप अनुक्रम [२०७२०९]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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