________________
आगम (०१)
“आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [२], नियुक्ति: [६८-१०५], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १३-१७]
पृथ्वी निक्षेपाद २ उद्देश:
प्रत
वृत्यंक
[१३-१७]
श्रीवाना-100 गाहा (९९-३३) 'अणगारवाइणो' गाथा (१.५-३३) 'कई सयं वधे' गाहा (१०१-३४) अण्णे य णेगावे पाणेनि गंग सत्र-14 जो पुढवि समारभते गाहा (१९२-३४) "पुर्वि समारभना' गाहा (१०३-३४) इदाणि णियचित्ति-एवं विधा- चूर्णिः
INTणिअणं' माह। (१-४-३४) से मुणी परिण्णायकम्मेनि मिनि 'गुत्ता गुत्तीहि गादा (१०५.-३४) अट्टे लोप परि।।१९ BHAI
शुष्णे' (१०६-३४ सत्र) पदच्छेदे को पारित दवही सगडादिचका एकनी दूहतो वा परित्ताधी आचालिजंति सो दबट्टो भण्णाति, कं.पले पत्ताधमादिम वा सरहा (व्हाइ), भावदोमट्टी तेहि संपीडित जीवचा संसारचक्के अणुपरीति, प्रहबा पंचहिं इंदियविसदि, अवा कमाबदही, अहया दंसबमा चरिनमोहेगा य, मिच्छनमोहो अभिमहियअणमिम्महित हिं, चरितमोहो कसायकोकसायहि, हवा सम्वेग मोहथिजेण, अवा दिहण कम्मेण, लोगस्य अट्टविही शिक्खेवो, अप्पमत्येण जीवोदयमाचलोगेण अहिगारो, थिवि सनीपंचदियलोएणं, जो मम्मन चरिणे या चरिताचरिन वा पडिक्जेजा, अहवा सम्वेणं लोगणं अहिगारो, जाओ अट्टो निच्यं नियतं वा ऊणो परिणी, सवतो वा ऊगो, सो वउविहो दयपरिज्जणी दरिहो, जो वाऽइदच आमलसमाणोऽविन लमद, तिसिओ पाणिय घुमुक्षिनो असणं आउरो भेसवमादि, मावपरिज्जूणो नागादीहि अण्णी परिजुभोनि का पुथइ, जहा जिन्य सरीर बेरीहुओ काखी, अचिरो जुण्णी पडो जिण्यां गिह सगडं पा एवमादि, भावजुण्णो उदयभाव उकडो य, सस्थनाणादिभावपरिहीणो अणंतगुणपरिहाणी, जमाव पृढ विक्फा३एस अक्षरम अगंतभागी उम्घाटो, चोहणं वोही, दुक्षेण बुज्या दुसवोही, सो एवं अज्माणेण दुकवरोधी य लोगो भवति, अह मेअञ्जो, असंघोही वा जदा भदत्तो, को देऊ,191 अयाणचं, जति अश्यााणनणेण परिजुम्मी परिज्जुण्याने मंदविमाणों मंदविण्यामनणेण दुरसंवाही, एवं परोप्पकारा परेसि
दीप अनुक्रम [१३-१८
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
[23]