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________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [३], उद्देशक [४], नियुक्ति: [२१४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १२१-१२५] प्रत वृत्यंक [१२११२५] श्रीआचा- भवति , सत्थाओ, तेण तं सत्यं गचा परिहरियम्ब, सत्थं अधिकृत्य भण्णति, 'अस्थि सत्थं परेण परं' परेणवि परं परंपर | परशस्वादि गंग सत्र-10 विण्हा तिण्हतरं, लोयविसेसा करेंति, विरिय विसेसा य तबिसेसो, विसंपि किंचि संजोतिमं छहि मासेहिं मारेति, परं पुण ताल-|| चूर्णिः पुडमिचेण मारेति, लवर्णपि किंचि चिरेण किंचि आसु, गेहोऽवि घृततेल्लबसा परा, एवं खारअंबिलादिदचसत्यविभासा, भाव॥१२८॥ सत्यपि परिणामविसेसा तिव्वं तिब्वतरं च भवति, सव्वं च एतं जहा जहा परं तहा तहा दुक्खमाबद्दति, परोप्परं वा दुक्खमाव- | | हति, किंची सकायसत्थं किंची तद्विधं मणा, असत्यं परेण परं सत्तरसविहो संजमो, सो परेण परंण भवति, पुढविकायसंजमेण ण कोयि पुढविकायिओ सनो जस्म मंदा दया कीरति जस्स वा उक्कोसा जहा भणिता, जहा तालपुढादीणं दवसत्थाणं वीरिय-14 | विसेसो दिवो ण एवं पुढविकाइयाइयाणं अण्णस्स अप्पा दया कीरति अण्णास्स महती, सब्बाविसेसेण तेसु संजए, से सुहुमं वा बायरं वा, एवं सेसेसुवि जाण, मणसंजमे वयसंजमे कायसंजमे निविट्ठस्सवि योगस्स विसेसेण णिग्गहो कायन्यो, भावसत्थं कहं परं परं | | दुहावहं भवति !, बुबह-'जे कोहदंसी कोई पस्पति कोहदंसी, जंभणितं कुज्झति, कोहा दरिसयतीति, जहा 'रुदस्स खरा दिट्ठी | उप्पलधवला पसन्तचित्तस्स' एवं सम्वत्थ 'जाक दुक्ख' अहवा जे कोह जाणति स माणं जाणति जाव दुक्खें, अहवा खमणाधिगारे | अणुअत्तमाणे भष्णति-'जे कोहदंसी से माणदंसी' जं भणितं परिमाडेति, जो कोई खवेति सो सेसेवि, जतो एवं परेण परं सत्थं NI दक्खेणावहति असत्थं परेण पर सुहं आवहति तेण 'अभिनिवडूज त कोहं च माण च' निम्नहनंति वा छिण्णणनि चा एगट्ठा, | लोगेवि जहा एगेणप्पहारेण हत्थो निव्वट्टितो पादो वा, जं भणित-छिण्णा, एवं जाब दुक्खं च, 'एतं पासगस्स दंसर्ण' जं HE] भणितं उबदेसो 'उबरयसत्थस्स' कसायसत्थाउ, जं वा जस्स सत्थं ततो उवरतस्स 'पलियंतकडस्स' परियंतकरस्सत्ति || ॥२८॥ दीप अनुक्रम [१३४ १३८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [132]
SR No.006201
Book TitleAagam 01 ACHAR Choorni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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