________________
आमुख संस्कृति के विकास में जितना महत्त्वपूर्ण स्थान इतिहास का है, ठीक उसी प्रकार उतना ही महत्त्व इतिहास में साक्ष्यों का है । प्रामाणिकता के अभाव में इतिहास धीरे-धीरे किन्वदन्तियों का रूप ग्रहण कर लेता है ।
इतिहास के साक्ष्यों की विभिन्न कड़ियों में एक है शिलाओं और मूर्तियों पर उत्कीर्ण लेख । जैन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख महत्त्वपूर्ण सूचनाओं के स्रोत हैं । प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों से अनेक महत्त्वपूर्ण बिन्दु स्वतः प्रामाणित हो जाते हैं । उनके निर्माता उपासकों का समय, उनकी ज्ञाति, उनका गोत्र तथा आचार्यों एवं पदवीधारी मुनिजनों का काल-निर्धारण होने के साथ-साथ गुरु परम्परा भी निश्चित हो जाती है । उनके गच्छ का भी निर्धारण हो जाता है । कुछ लेखों में उस काल के राजाओं तथा ग्रामों-नगरों के नामोल्लेख भी प्राप्त होते हैं । कई विस्तृत शिलालेख प्रशस्तियों में उस राजवंश का और उनके निर्माताओं के वंश का भी वर्णन होता है और उनके कार्यकलापों का भी । ..
२०वीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही जैन परम्परा के शिलालेखों-प्रतिमाओं के संकलन को महत्त्व देना प्रारम्भ हुआ और पूरनचन्द नाहर, मुनि जिनविजय, आचार्य बुद्धिसागरसूरि, आचार्य विजयधर्मसूरि, मुनि जयन्तविजयजी, मुनि कान्तिसागरजी, मुनि विशालविजयजी, आचार्य यतीन्द्रसूरिजी, महो० विनयसागरजी, अगरचन्दजी नाहटा, भंवरलालजी नाहटा, नन्दलाल लोढा, प्रवीणचन्द्र परीख, भारती शेलट आदि विभिन्न विद्वानों ने अत्यन्त श्रम के साथ इसे संकलित और सम्पादित कर विभिन्न संस्थाओं से इसे समय-समय पर प्रकाशित कराया । यह प्रक्रिया आज भी जारी है । ___ गच्छ विशेष से सम्बन्धित अभिलेखीय साक्ष्यों के अब तक दो महत्त्वपूर्ण संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, इनमें प्रथम है अंचलगच्छीय प्रतिष्ठालेखो, जो श्रीपार्श्व नामक विद्वान् द्वारा संकलित और अखिल भारतीय अचलगच्छ (विधिपक्ष) श्वेताम्बर जैन संघ मुम्बई द्वारा ई०स० १९७१ में प्रकाशित है । इसमें उस समय तक प्रकाशित सभी लेख संग्रहों से सामग्री का कालक्रमानुसार संकलन किया गया है । इसी प्रकार का दूसरा संकलन है खरतरगच्छीय प्रतिष्ठा लेख संग्रह, जो महो० विनयसागरजी द्वारा संकलित और प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर से ई०स० २००६में प्रकाशित है। उसी श्रृंखला में यह तीसरा संकलन है बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय, जो आचार्य श्री मुनिचन्द्रसूरिजी महाराज की प्रेरणा से ऊँकारसूरि आराधना भवन, सुरत से प्रकाशित हो रहा है । प्रस्तुत लेख संग्रह में पाषाण की प्रतिमा. जैसे भ. महावीर की पाषाण प्रतिमा के लिये महावीरः शब्द का प्रयोग किया गया है, जब कि धातु की भ. महावीर प्रतिमा के लिये महावीर पंचतीर्थी शब्द का प्रयोग हुआ है।
प्रस्तुत संकलन में ६ परिशिष्ट भी दिये गये हैं । परिशिष्ट एक के अन्तर्गत सम्बन्धित लेखों के वर्तमान प्राप्तिस्थान का विवरण दिया गया है । परिशिष्ट दो में लेखस्थ आचार्य व मुनिजनों के