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________________ पाठों को झंकार तथा पूज्य श्री की विशुद्ध संयम-चर्चा से उत्पन्न हृदय की गहराई में प्रभाव कर अन्दर ही अन्दर विचारने लगे कि- 'अपने गुरूजी को हमें फिर से विनती करना चाहिये कि संवेगी साधु महाराज जो शास्त्रीय पाठों की प्रस्तुत करने की तैयारी के साथ त्रिस्तुनिक मत की मान्यता को रूकावट को चुनौती दी है तो इस सम्बन्ध में अपने गुरुजी के मार्फत उत्तर देना चाहिये' इत्यादि । समस्त श्रावकों के प्रमुखों को एकत्रित करके पूरी बात कही- प्रमुख श्रावकों, “गुरु महाराज ने जो कहा है वह ठीक है" यों कहकर टालते रहे, परन्तु कितने ही जिज्ञासु श्रावकों ने कहा- “यों बात को टालने से क्या फायदा? अपने गुरुजी कहते हैं कि वह संवेगी नया साधु है वह पागम में क्या समझे ? यह तो पागम को बात है। परन्तु वह संवेगी तो शास्त्रीय पाठ देने के लिए तैयार है, तो सत्य का निर्णय शास्त्र के आधार पर ही होना चाहिए।" ___ इतने में प्रमुख नेताओं ने कहा कि, "अपने गुरुजी कहते है वह बराबर है । अपने गुरुजी के सामने सवेगी छोटे साधू की क्या औकात? वह शास्त्र के पाठों को क्या दे सकेगा? तुम्हें शास्त्री के पाठों की आवश्यकता हो या समझते हों तो चलो अपने गुरुजी के पास, वे धड़ाधड़ अनेक शास्त्रों के पाठ देगें। यों कहकर वे सब श्री विजय राजेन्द्र सूरिजी म. के ४५
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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