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संभवनाथ प्रभु देरे के भावोल्लास भरी अष्टप्रकारी पूजा कर स्नात्र पढ़कर, शान्ति कलश करके मंगल वस्त्र पहनाकर दीक्षा के लिए भव्य सजावटयुक्त खड़े किये गये मण्डप में मंगलवाद्यों के घोष के साथ शुभ शकुन की प्रेरणा जुटाकर सौभाग्यशाली सधवा स्त्रियों के मंगल गीत के मध्य झवेर चन्द भाई ने उमंग भरे प्रवेश किया ।
पू. गुरुदेव श्री को वंदना कर ज्ञान पूजा कर, मंगल वासक्षेप नीचे डालकर हाथ में श्रीफल रख नंदा समवसरण में रहने वाले चतुर्मुख जन बिबों को साक्षी अरिहंत समान समझकर श्री नवकार मंत्र की गिनती के साथ ही तीन प्रदक्षिणा दी।
पश्चात श्री गुरुदेव के दाहिने हाथ इशान कोण के सामने मुख रखकर बारित्र ग्रहण करने के अपूर्व उत्साह के साथ श्री गुरुदेव के स्वमुख से मंगल क्रिया का प्रारम्भ किया।
योग्य मुहूर्त में “ोघा” मांत्रिक-विधि के साथ वासक्षेप अभिमंत्रण के साथ जब मिला ता झवेर चन्द भाई जाने तीनों लोकों का राज्य मिल गया हो ऐसा उमंग से उल्लासित खूब नाचा तथा प्रभुशासन के संयम को प्राप्त कर जीवन को धन्य बनाया।
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