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षितों को दृष्टि में रखकर झवेर चन्द जो को समझाया है कि- “भाई ! तुम्हारो उम्र अभ पन्द्रह साल की है । कार्तिक कृष्ण में तुम्हें सोलहवॉ साल लगेगा । का. पूनम के बाद में यहाँ से विहार करके अहमदाबाद जाऊँगा, वहां तुम का. व. में आ जाना।
सौलह साल के तुम हो जायो बाद में शास्त्रीय ओर सामाजिक नियमानुसार कोई रुकावट नहीं है और तुम्हारी माता तो बहुत धर्म के रंग से रंगी हुई है । मोह के बन्धन प्रच्छे-अच्छों के बाधा डालते हैं किन्तु फिर भी कोई संयम लेने के बाद तुम्हें कोई वापस नहीं ले जायेगा । इसका मुझे विश्वास हैं।
कितनी बार संयोगों की विषमताएँ राज मार्ग को भी छोड़कर अपवादिक गलीकूची का भी सहारा लेना पड़ता है। इसलिए थोड़ा धीरज रख। जल्दी किसी काम को बिगाड़तो है।
झवेरचन्द ने भी का. पूणिमा होने पर तत्काल अपने आप के संसार रुपी खाई में से छूट पड़ने के अवसर में शिथिलता हो इसकी अपने अन्तरात्मा में विचार कर पू. गुरुदेव के वचनों को शिरोधार्य कर बात कोथोड़ा भूला पटका
कार्तिक पूर्णिमा पर सिद्धाचल जी की पटको यात्रा