________________
दोनों पक्षों में हानि है "। " श्राप सब समझू - दीर्घदर्शी हो । मुझे पू. गच्छाधिपति श्री को वंदन किये सोलह वर्ष बीत गये हैं, अब पू. गच्छाधिपति श्री की तबियत शिथिल हो गयी है अतः अधिक आग्रह नहीं करो तो उत्तम" इस रीति से हार्दिक श्राश्वासन देकर श्री संघ के मन को संपादित किया। का. वि. 3 प्रात: छोटे मोटे धर्मानुरागी सबसे भावभीनी विदा लेकर पूज्य श्री ने विहार किया। उदयपोल दरवाजे पर मांगलिक सुनाया । अश्रुपूरित नेत्रों से सब ने पूज्य श्री को शतापूर्वक विचरने का कहकर भारी हृदय से पीछे फिरे । पू. श्री का. वि. 9 के मंगल दिन केशरियाजी पधारे । विहार में उदयपुर के सैंकड़ों भाविक थे ।
महावीर की दीक्षा - कल्याणक तिथि का ख्याल रखकर पूजा-रथ यात्रा - महोत्सव करने की श्री संघ को प्रेरणा प्रदान की । का. वि. 11 प्रातः बीछीवाड़ा होकर शामलाजी विद अमावस्या पधारे वहां से माघ सु. 1 प्रातः टीटोई तीर्थ में मुही पार्श्वनाथ प्रभु के दर्शन वंदन किये। श्री संघ ने मौन एकादशी के लिए रुकने का बहुत आग्रह किया परन्तु पू. गच्छाधिपति श्री के दर्शन वंदन की उत्सुकता से रुके नही । मोड़ा, बाड़, घड़िया, लालपुर होकर पूज्य श्री माघ सु 10 के शुभ दिन कपड़वंज पधारे ।
श्री संघ को खबर मिली बिना ऋतु के आम फलने की
२२२