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"साहब ! हम निराधार हो जावेंगे । आप हमें छोड़कर गुजरात के साधुओं से भरपूर हरे-भरे प्रदेश में पधार जाओगे तो संवेगी साधु के विहार से वंचित हमारे इस क्षेत्र की क्या दशा होगी?" उदयपुर शहर के छोटे-बड़े एक एक भाई बहिन भी कल्पांत करने लगे तथा पूज्य श्री को इस प्रदेश में विचरण कर बारंबार उदयपुर को चातुर्मास का लाभ देने हेतु भावपूर्वक आग्रह करते रहें ! इस प्रकार उपधान कार्य के बाद मौन एकादशी तक श्री संघ के प्राग्रह से पूज्य श्री की स्थिरता हो सकी।
इस समय "भोयणी" तीर्थ नया प्रकट हुआ उसकी महिमा बहुत फैल गयी थी। नया जिनालय तैयार होने लगा । उसकी प्रतिष्ठा का प्रसंग महीने दर महीने सुना जा रहा था। इससे पूज्य श्री "भोयणी" प्रतिष्ठा के हिसाब से उदयपुर से जल्दी विहार के निर्णय की भूमिका दृढ़ बना रहे थे । परन्तु उदयपुर श्री संघ का धर्म-भावना का आग्रह देख कर छोटे-बड़े सबकी उत्सुकता देखकर उलझन में पड़ गये।
जो कि बारंबार उपराउपरी चातुर्मास के अधिक परिचय के कारण जब भी विहार हो तब ऐसा वातावरण होना स्वाभाविक है । परन्तु पूज्य श्री जो "भोयणी"-प्रतिष्ठा पर भोणी चमत्कारों की बात को सुनकर जाने की इच्छा थी। उसमें भावी योग से विघ्न खड़ा हो गया जो कि निम्ना
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