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________________ मुहूर्त पूरा कर पांच दीक्षार्थी बहिनों की दीक्षा-विधि ठाठ से की। ग्यारह बजे दीक्षार्थी वेष बदलने गये उस समय माला परिधान प्रारम्भ हुआ। ___ माला के चढ़ावे 125 तक ठीक हुए। 125 वीं माला 1121/- में पहनाई। बाद में समय की कमी से 1001/-, 751/-, 501/-, 302/-, 251/-, 2017, 1251, अन्य मालायें 101 के नकरा से पहनाने में आयो। बाद में सब माला वालों के साथ श्री संघ को लेकर पूज्य श्री चौगान से शहर में शीतलनाथ जी के मंदिर के देहरे दर्शन हेतु पधारे । चैत्य वंदन करके गौड़ी जी के उपासरे आकर मांगलिक सुना कर श्री उपधान-तप की भव्य आराधना की समाप्ति की। श्री संघ तरफ से इस प्रसंग में आठों दिन साधार्मिक-वात्सल्य हुआ । समस्त उदयपुर में सबके चूल्हें अभयदान में रहे । इस अवधि में पू. गच्छाधिपति श्री की तबीयत खराब होने के समाचार यदाकदा शिथिलता के प्राते रहने से तथा बारह से चौदह वर्ष की लम्बी अवधि हो जाने से पूज्य गच्छाधिपति के दर्शन-वंदन की उत्कृष्ट भावना होने से विहार के लिये पूज्य श्री पूर्ण तथा पक्की तैयारी में जुट गये । श्रीसंघ के अग्रगण्यों को खबर पड़ी कि पूज्य श्री अब गुजरात तरफ पधारने हैं । इसलिये वे बारंबार दोपहर, रात्रि में तथा व्याख्यान में जोरदार विनती करने लगे कि २१०
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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