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________________ जाने कब अवसर प्रावे ? इसलिए गिरधर सेठ को उपधान तप करने की स्वीकृति देने के बदले वह लाभ हम श्री संघ को ही मिले तो उत्तम ।" थोड़ी देर तक बात बहुत चर्चित हुई- अाखिर कार पूज्य श्री ने निराकरण किया कि- "यों करो! गिरधर सेठ भले ही उपधान करावे । उपधान के सम्बन्ध में प्राथमिक रूप में तथा परचूनी खर्च बहुत होता है सो सम्पूर्ण लाभ उन्हें दो तथा श्री संघ की तरफ से एकासणा, प्रांबील की टोलियां लिखी जावे । इस प्रकार दोनों को लाभ मिले। गिरधर सेठ ने दीन निवेदन पूर्वक कहा कि- "बापजी ! टोलियां संघ लिखावे तब तो सब लिख लिया जाय फिर मुझे क्या लाभ ?" अन्ततः हां, ना करते गिरधर सेठ के "उतर पारणा" तथा पहली-अन्तिम टोली बाकी की टोली श्री संघ लिखा लेवे । बचा हुआ सारा लाभ गिरधर सेठ को।" ऐसा हम सुनकर सबने हर्षयुक्त गगन भेदी शासन देव की जय के नाद से वातावरण गूजा दिया। बाद में श्री संघ ने पूज्य श्री से उपधान तप के लिये मुहूर्त की इच्छा दर्शायी जिसको सकल श्रीसंघ ने प्रभु महावीर स्वामी के गगन भेदी जयघोष के साथ स्वागत कर लिया। चौग न देहरासर के सामने विशाल बरामदे में भव्य मंडप बांधकर उपधान वालों की भक्ति के लिये भी सम्पूर्ण २०६
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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