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ऐसा प्रकट कर पोष वि. 10 भीलवाड़ा की तरफ विहार का विचार दर्शाया |
उसके पश्चात पोष सु. 3 लगभग उदयपुर की स्थानिक चैत्य परिपाटी पूरी होने पर सिसारमा, नाई, लक्कड़वास, आय आदि के आसपास के प्राचीन जिनालयों की चैत्य परिपाटी की व्यवस्था की । वह कार्य पोष वि. आठम को पूरा हुआ। उस दिन व्याख्यान में विद दसम भीलवाड़ा तरफ विहार करने की घोषणा की । भीलवाड़ा के श्रावक भी उस दिन विनती करने तथा भक्ति का लाभ लेने आ पहुंचे ।
उदयपुर श्री संघ को चौगान के देहरासर की व्यवस्था में समय चक्र से आ गई क्षतियों को हराकर व्यवस्था तन्न समुचित करने हेतु चातुर्मास का आग्रह था । पूज्य श्री ने " वर्तमान योग' से निपटा कर हाल तत्काल उस सम्बन्ध में स्पष्ट उत्तर न दे सकने की मर्यादा दर्शाई । पूज्य श्री का विद दसम प्रातःकाल उदयपुर श्री संघ से दबदबायुक्त विदाई मान सहित विहार हुआ । माघ सु. सप्तमी भीलवाड़ा में महोत्सव के साथ प्रवेश हुआ | भीलवाड़ा में तीर्थ यात्रा के सम्बन्ध में तीन व्याख्यान हुए । छंरी पालना करते श्री संघ को होते हुए लाभ निस्तारण सहित प्रकट कर यात्रार्थी के रूप में छंरी पालने का दायित्व विस्तार से समझा कर सबको प्रोत्साहित किया ।
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