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________________ लोकाग्रह की अवगणना करके “यात्रीकर" चालू कर दिया। परिणाम स्वरूप धर्मश्रद्धालु यात्रियों तथा जैन श्री संघ के साथ पालीताणा राज्य को खूब संघर्ष में उतरना पड़ा। बहुत धमाल होने लगी। वातावरण बहुत कलुषित होने लगा। अन्ततः आ. क. की पेढी नगरमेठ प्रेमा भाई आदि संभावित अग्रगण्य सेठियों के हस्ताक्षर से वि. सं. 1940 ई. स. 1884 के सितम्बर की पांचवी ताराख (5-9-1885) बम्बई के गवर्नर के समक्ष अपील की। रक्षापानी की रकम बढ़ाकर भी यात्रार्थियों पर कर को रद्द करने जैन श्री संघ के मन को अन्याय को अटकाने की विनती को। इस रोति से पालीतारणा स्टेट के साथ ई. स. 1863 वि. सं. 1919 में सम्पन्न हुए तीसरे करार के अनुसार काम चल रहा था। उसमें काल के विषम प्रभाव से पालीताणा स्टेट ने सिर उठाया है। और यात्रीकर डालने का काला बर्ताव कर रहे हैं । इस प्रसंग में श्री संघ में खूब जाग्रति हुई। राज्यकर्ताओं में उत्पन्न कुमति दूर हो तथा गिरिराज को यात्रा करने वालों का अवरोध दूर हो उस सम्बन्ध में सिद्धगिरि के अट्ठ मन्दी आराध भाव का सुद 13-14-15 को तय को। खूब जोशीले प्रवचनों से भावुक जनता श्री सिद्धगिरि अट्ठम की आराधना मे खूब उमंग से जुड़ गयी । श्री संघ ने तार डाक प्रादि से पेढ़ी को तथा पालीताणा सेठ को अपने १६१
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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