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है, फिर भी उनका जीवन-चरित्र क्यों नही लिखा गया ? उसका कारण यह समझ में आता है कि"माधारभूत प्रामाणिक सूचनाओं की श्रृंखला के अभाव में पू. श्री भवेर सागर जी म. का जीवनचरित्र साकार नहीं बन सका। जिससे देवगुरु कृपा से प्राप्त प्रामाणिक सूचनाओं के मिलने के आधार पर पू. प्रागमोद्धारक प्राचार्य देवश्री के जीवनचरित्र तनिक अप्रासंगिकता के दोष को दूर कर समस्त सामग्री का उपयोग यथाशक्ति करने का विचार किया है।
इस तरह प्रयत्न करने पर लिखे हुए जीवनचरित्र को स्वतंत्र रुप देने का सोचा गया इस तरफ जिसे इस ग्रंथ का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होने पाया है । इस ग्रंथ के पालेखन में देवगुरु कृपा से उदयपुर के गोडी जी उपाश्रय के कमरे से प्राप्त हुए पुराने पत्रों का सहयोग ज्यादा है। इसके अतिरिक्त वि. सं. १९४५ में प्रकाशित उदयपुर श्री संघ की " श्री गोडी जी महाराज का भण्डार की