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________________ सुगन बाई ने भी अपनी 42 वर्ष की आयु में, पिछले दम वर्ष के वैधव्य जीवन, भर जवानी में गृह भंग होने का योग, प्रादि को दृष्टि में रखकर पूज्य श्री के “ पानी के पूर्व पाल" की तरफ विकारी-वासनाओं, संयम के मार्ग रुकावट न खड़ी हो, उसे अगमचेतो को सावधानी के रुप में बनाये गयी इस विधि को खूब उमंग से उत्साहपूर्वक इसका आचरण किया। पूज्य श्री के सूचना के आधार पर माघ सु. 2 को आंबील कर चौगान के देरासर में विराजमान प्रभु महावीर परमात्मा के भव्य बिंब के सम्मुख जाप इत्यादि करके सायं पौषध ले, रात्रि संथारा पोरसी, पीछे पुज्य श्री ने बताया उस जाप को बराबर करके संथारा किया। बराबर ढाई बजे जाग्रत हुई सुगन बाई ने सात नवकार गिनकर किस नालिका छिद्र से श्वास जाता है इस खोजा तो दाहिने नासिका रंध्र में से निकल कर ऊपर के भाग में जाता श्वास का अनुभव हुआ। श्री नवकार का जप, नवस्मरण गौतम स्वामी का रास, सोलह सती का छन्द आदि के स्मरण के साथ शेष रात्रि बिताकर राई प्रतिक्रमण करके, पौषध की पालना श्री वीतराग प्रभु की अष्ट प्रकारी पूजापूर्वक करके ठीक निर्धारित समय साढ़े आठ बजे पू. साध्वी जी म. तथा अपने कुटम्बियों को लेकर दीक्षाभिलाषी सुगनबाई पूज्य श्री के पास आई। १३९
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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