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________________ करने के बाद आस-पास के क्षेत्रों में विचरण करने की भावना से पू. गच्छाधिपति श्री को माज्ञा मंगाई होगी ऐसा नीचे के पत्र से समझ में प्राता है । प्राज्ञा की राह देखने में उन्होने चातुर्मास के पीछे पांच दिन बिताये हों ऐसा लगता है :- श्री अहमदाबाद से लिखी मुनि मूलचन्द जी की सुखशांता बांचना | श्री अजमेर मुनि झवेर सागर जी - जत तुम्हारा पत्र × × × × पहुंचा । हकीकत जानी विहार करके देवली को छावनो तरफ जाऊंगा लिखा सो ठीक X x X x आगे विहार x x x x सो लिखना । आत्माराम जी ठा. 13 शेमरेत होकर बीकानेर तरफ विद 7 को विहार करेगें x x x x और आत्माराम जी को बड़ोदरा वाले हंसविजे जी आदि ठा. 3 को माह × × × × इस तरफ भेजा है । xxxx मिति 1939 का फा. व. 5 गुरु पत्र का जवाब विस्तार सेदेना वीरविजे की वंदना x x x x कागज पहुंचे तुरंत जवाब लिखना " इस पत्र में पू. झवेर सागर म प्रति पू. गच्छाधिपति श्री को हृदय के भाव बहुत स्पष्ट रोति से हितैषी एवं स्नेह से भरा दीखता है । अन्य भी अनेक विषयों को इस पत्र में चर्चा की है | लेकिन यहां अप्रासंगिक होकर उनका उल्लेख नही किया है । इस प्रकार पू. गच्छाधिपति श्री के हार्दिक ममता १२६
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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